Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ११ :
आत्माने अपूर्व शांति अने समाधि आपनार
अलौकिक वीतरागमार्ग
सर्वज्ञदेवनो मार्ग अपूर्व अलौकिक छे; ते मार्गने
सेवतां आत्मानी परम वीतरागी शांति थाय छे. जेमां शांति
न मळे ते वीतरागनो मार्ग नहीं. वीतरागनो मार्ग तो
वीतरागभाववडे परम अतीन्द्रिय शांति देनार छे. अरे जीव!
वीतरागनो आवो मार्ग तने मळ्‌यो, तो हवे बीजी उपाधि
छोडीने वीतरागभाववडे तारा परमात्मतत्त्वने चिंतव, तेमां
तने परम शांति परम आनंद ने परम समाधि थशे.
[सोनगढमां बोटादना भाईश्री शिवलाल वीरचंद गांधी तथा जोरावरनगरना
भाईश्री अनुपचंद छगनलाल उदाणीना नवा मकान (गुरुमहिमा) ना वास्तु प्रसंगे
मंगलप्रवचनमांथी. वीर सं. २४९७ आसो सुद त्रीज नियमसार गाथा १२२]
* * * * *
समाधि एटले आत्मानी साची शांति ने आनंद केम थाय तेनी आ वात छे.
आधि–व्याधि ने उपाधि वगरनो जे वीतरागी शांतभाव ते समाधि छे. आ समाधिमां
बहारनुं कोई आलंबन नथी, पोताना शुद्धआत्मानुं ज आलंबन छे, वीतरागभाववडे
पोताना आत्मानी श्रद्धा–ज्ञान–अनुभव ते समाधिनी रीत छे.
मुमुक्षु धर्मीने पंचपरमेष्ठी भगवंतो प्रत्ये बहुमान–स्तुतिनो प्रशस्तभाव आवे
छे; पण परम समाधिमां तो ते प्रशस्तरागनुं पण आलंबन नथी. सर्वज्ञ परमात्मा
अरिहंत अने सिद्धभगवंतोने अचिंत्य परम वीतरागवैभव प्रगट्यो छे, साधुमुनिओने
पण आत्माना प्रचुर स्वसंवेदन वडे धणोज आनंदमय वीतराग वैभव प्रगट्यो छे.
अशुभथी छूटवा मुमुक्षुजीवोए, परमयोगिमुनिओए पण आवा परमेष्ठी भगवंतोनी
स्तुति–बहुमान कर्तव्य छे; तेमां प्रशस्तभाव छे. अने परमार्थ समाधिमां लीन एवा
निर्विकल्पसंतोने तो अतीन्द्रिय आनंदमां एवी एकाग्रता छे