: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ७ :
रीझवी लीधा. ए पोते वीतरागमूर्ति थई गयो. सम्यग्दर्शन–ज्ञानादि बधा भावो
वीतरागताना ज प्रकार छे, ते कांई रागना प्रकार नथी; तेथी सम्यग्दर्शनादि बधा धर्मो
वीतरागतानी ज मूर्ति छे. जेने सम्यग्दर्शनादि थयुं ते वीतरागमूर्ति थयो. आत्माना
ज्ञानधर्मनी सम्यक्भावनावडे आवो धर्म थाय छे. माटे मुमुक्षुजीवे अतर्मुख थईने
पोताना शुद्धज्ञानमूर्ति आत्मानी सम्यक्भावना करवा जेवी छे. वारंवार क्षणेक्षणे परम
महिमा लावीने पोताना ज्ञानस्वभावमां परिणति वाळवा जेवी छे...ते सम्यक्भावना
मुक्तिनुं कारण छे.
शुद्धात्मानी आवी सम्यक्भावनावंत मुनिओने हुं आदरपूर्वक तेमना गुणोनी
प्राप्तिअर्थे वंदुं छुं, एटले के हुं पण रागादिभावोनी भावना छोडीने मारा शुद्धात्मानी
सन्मुख थईने तेनी सम्यक्भावना करुं छुं.
आस्रव अने संवर
शुभाशुभकर्मागमद्वाररूप आस्रवः।
आस्रवनिरोधलक्षणः संवरः।।
सर्वार्थसिद्धिमां पूज्यपादस्वामी कहे छे के–
शुभ–अशुभकर्म जेनाथी आवे छे ते आस्रव छे.
शुभरागवडे शुभकर्मनुं आगमन थाय छे एटले ते आस्रव छे;
अने ते बंधनुं कारण छे, ते मोक्षनुं कारण नथी.
आस्रवना निरोधने संवर कह्यो छे, एटले शुभकर्मनो
आस्रव पण जेनाथी अटके ते संवर छे, ते मोक्षमार्ग छे.
शुभकर्मनो पण जेनाथी आस्रव थाय ते मोक्षमार्ग नथी.
आस्रवनी अने संवरनी आवी स्पष्ट व्याख्या समजे
तो ज मोक्षमार्गनो साचो निर्णय थाय.