Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : आसो : २४९७
क्यांथी ओळखी शके? अंतरमां जईने रागथी पार ज्ञाननो पोते अनुभव करे तो ज
तेनी खबर पडे. अज्ञानमां रहीने जीव गमे तेटलुं करे पण तेने शांति के आनंदनो
अनुभव थाय नहीं. सम्यग्ज्ञानीए ज्ञान अने रागनी भिन्नतारूप भेदज्ञाननी चावीवडे
आत्माना निधाननो कबाट खोली नांख्यो छे, ते पोताना आनंदने पोतामां देखे छे.
अहा! चैतन्यनो आवो आनंद! अने तेने बतावनारी वीतरागनी वाणी! तेने
झीलवा माटे महान पात्रता जोईए. सिंहणना दूध जेवी वीतरागनी वाणी, अने
वीतरागना भाव, तेने झीलवा माटे वीतरागपरिणतिरूप सोनानुं पात्र जोईए; ते
रागरूप लोढाना पात्रमां न रहे. रागनी रुचिवाळो जीव वीतरागनी वाणीने झीली शके
नहीं, तेनी परिणतिमां आनंदरसनी धारा झीलाय नहीं; चैतन्यस्वभावमां स्वसन्मुख
थईने, रागथी भिन्न थयेली जे शुद्धज्ञानपरिणति, ते ज चैतन्यनी धोधमार
आनंदधाराने झीले छे, ते ज वीतरागनी वाणीने झीले छे.
अहो, समयसार–नियमसाररूपी आ अध्यात्मर्शास्त्रो तो अमृतना दरिया छे...
केमके तेमां कहेला चैतन्यभावने समजतां सम्यग्ज्ञानमां आनंदनो समुद्र उल्लसे छे...
आवा चैतन्यसमुद्रमां जे डुबकी मारे छे तेने ज संयमरूपी रत्नमाळा प्राप्त थाय छे.
बापु! तारा चैतन्यसमुद्रमां एकवार नजर तो कर! तने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी
रत्नमाळा प्राप्त थशे... ने तुं मोक्षनो स्वामी थईश. जुओ, आवी ज्ञानदशावाळा जीवने
ज आनंदमय चारित्रदशा होय छे; बीजाने ते चारित्रनी खबर नथी.
चारित्रवंत मुनिवरोना चित्तमां कोण वसे छे? ते चारित्रवंत मुनिवरोना चित्तमां
पोतानुं परम आत्मतत्त्व ज वसे छे; परमतत्त्व सिवाय कोई रागादि परभावो एमना
चित्तमां वसता नथी. अहा! जेनी ज्ञानपर्यायमां परमात्मा वसे छे, जेनी ज्ञानपर्यायमां
संसार वर्ततो नथी, –आवा मुनिने मोक्षसुखना कारणरूप चारित्र होय छे. मुनिवरोना
चित्तमां जेनो वास छे एवा आ परमात्मतत्त्वने हुं सदाय नमुं छुं...मारी ज्ञानपर्यायने
अंतर्मुख करीने, तेमां हुं मारा परमात्माने अनुभवुं छुं. अहो! में मारी ज्ञानपर्यायमां
मारा परमात्माने वसाव्या छे, रागनो तेमां वास नथी. रागने जुदो जाणीने
परमात्मतत्त्वमां मारी ज्ञानपर्यायने एकाग्र करतां अपूर्व आनंदनी धारा मारामां वरसे
छे. आवी आनंद– रसनी उग्रधारा ज्यां वरसे त्यां ज चारित्र होय छे, ने ते चारित्र
मोक्षसुखनुं कारण छे. माटे हुं–आत्मा मारी पर्यायवडे मारा परमात्मतत्त्वने नमुं छुं.