: २२ : आत्मधर्म : आसो : २४९७
आत्मानो ज आश्रय लीधो छे, एटले के पोताना परम शुद्धस्वरूपने ज जे अनुभवे छे
ते जीवने बीजा कोई भावनुं आलंबन नथी. बस, पर्याये आलंबन लीधुं पोताना ज
द्रव्यनुं; द्रव्य–पर्याय वच्चे ज आनंदनी रमत रही, तेमां त्रीजुं कोई वच्चे नथी. भगवान
आत्मा ज पोतानी अंतरपरिणतिना बळे परभावोने भिन्न करवा समर्थ छे. एनामां
एवी अचिंत्य ताकात छे के स्वानुभूतिना एक टंकारे मिथ्यात्वादि भावोने नष्ट करी
नांखे छे. आवा निजस्वरूपने पहेलां धीरजथी बराबर समजी लेवुं ने पछी गायनी जेम
शांतिथी अंदर वागोळवुं...ने अनुभवमां लेवुं.
वाह रे वाह! केवो मजानो सर्वज्ञनो मार्ग! सर्वज्ञनो मार्ग कहो के भगवान
बनवानो मार्ग कहो. आवो सरल मार्ग आत्मामां पोतामांथी ज प्रगटे छे. पोतानो
मार्ग पोतामां ज समाय छे; तेमां कोई बीजानो आशरो लेवो पडे तेवुं नथी. आत्मा
पोते ज स्वाधीन बेहद ताकातवाळो छे. ते ज्यां पोते पोताना स्वरूपनी सन्मुख थयो
त्यां अज्ञान वगेरे बधा परभावो व्यय पामी जाय छे–छूटी जाय छे. परभावोने
छोडवानी रीत एक ज–के पोताना शुद्धस्वद्रव्यनुं अवलंबन करवुं. जे परिणति अंतर्मुख
थईने स्वद्रव्यमां ज तल्लीन रहे तेमां परभाव होता ज नथी; ते परिणतिमां तो
पोताना भगवाननो भेटो थयो छे, तेथी तेने आत्मानुं सर्वस्व कह्युं छे. “आत्मस्वरूपनुं
ध्यान ते सर्वस्व छे.” परम पारिणामिकस्वभावनां रत्नो ते ध्यानमां प्रगटे छे.
आत्मस्वरूपने अवलंबनारा जेटला भावो छे ते धर्मध्यान छे. ते भावथी सम्यग्दर्शन
प्रगटे छे, परमआनंद, वीतरागता, केवळज्ञान वगेरे बधुंय ते स्वद्रव्याश्रित भावथी ज
प्रगटे छे; ने ते भावमां सर्वे परभावोनो क्षय करवानी ताकात छे. धर्मीने
अभेदअनुभूतिमां क्षायिकादि निर्मळभावो प्रगटे छे, पण ते पर्यायना भेदो उपर तेनुं
लक्ष नथी.
बापु, तारो आत्मा ज तारा आनंदनो आधार छे; तारा ज्ञाननो, तारी श्रद्धानो,
तारा चारित्रनो, तारा समस्त शुद्धभावोनो आधार तारो अखंड आत्मा ज छे, तेनुं
अवलंबन कर; बीजा कोईना अवलंबननी बुद्धि छोड अहो, पोताना आवा
परमस्वभावना अचिंत्य महिमाने अंदरमां वागोळतां परिणाम तेमां एकाग्र थाय छे,
त्यां परभावो छ्रूटीने, सहज स्वरूपमां उपयोगनी एकाग्रतारूप ध्यान थाय छे, ते
ध्यानमां परम आनंदरसनी धारा वरसे छे. तेथी आचार्यभगवान कहे छे के अहो!
आवुं ध्यान ते सर्वस्व छे. आवा ध्यानवडे पोतामां ज भगवान आत्माना भेटा थाय
छे. आ भगवानने भेटवानी (ने परभावोने मेटवानी) रीत छे.