: आसो : २४९७ आत्मधर्म : २३ :
सम्यग्दर्शनना आठ अंगनी कथा
समकितसहित आचार ही संसारमें ईक सार है.
जिनने किया आचरण उनको नमन सोसो वार है;
उनके गुणोंके कथनसे गुणग्रहण करना चाहिए,
अरू पापियोंका हाल सुनके पाप तजना चाहिए.
[प्रथम निःशंकअंगमां प्रसिद्ध अंजनचोरनी
कथा, बीजी निःकांक्षअंगमां प्रसिद्ध सती अनंतमतिनी
कथा, त्रीजी निर्विचिकित्सा–अंगमां प्रसिद्ध उदायन
राजानी कथा, चोथी अमूढद्रष्टि–अंगमां प्रसिद्ध
रेवतीराणीनी कथा, पांचमी उपगूहन अंगमां प्रसिद्ध
जिनभक्त शेठनी कथा, छठ्ठी स्थितिकरण अंगमां प्रसिद्ध
वारिषेणमुनिनी कथा, तथा सातमी वात्सल्यअंगमां
प्रसिद्ध विष्णुमुनिनी कथा आपे वांची; हवे आठमी
छेल्ली कथा आप अहीं वांचशो.]
(८) प्रभावना–अंगमां प्रसिद्ध वज्रकुमारमुनिनी कथा
अहिछत्रपुरमां सोमद्रत्तमंत्री हता; तेनी सगर्भा स्त्रीने केरी खावानी ईच्छा थई.
हजी केरी पाकवानी ऋतु न हती, छतां मंत्रीए वनमां जईने तपास करी तो आखा
वनमां एक झाड उपर सुन्दर केरी झूलती हती. तेने आश्चर्य थयुं! ते झाड नीचे एक
जैनमुनि बेठा हता, तेना प्रभावथी ते झाडमां केरी पाकी गई हती. मंत्रीए भक्तिपूर्वक
नमस्कार करीने मुनिराज पासेथी धर्मनुं स्वरूप सांभळ्युं, अने अत्यंत वैराग्यवश ते ज
वखते दीक्षा लईने मुनि थया ने पर्वतमां जईने आत्मध्यान करवा लाग्या.
ते सोमद्रत्तमंत्रीनी स्त्री यज्ञद्रत्ताए पुत्रने जन्म आप्यो. ते पुत्रने लईने
मुनिराज पासे गई. पण संसारथी विरक्त मुनिए तेनी सामे जोयुं नहीं. तेथी
क्रोधपूर्वक ते स्त्री बोली के–जो साधु थवुं हतुं तो मने शा माटे परण्या? मारी जीन्दगी