Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९७ आत्मधर्म : २९ :
आराधनाना पंथ अंदरमां ऊंडां छे.
मुक्तिना मारगडा दुनियाथी आघा छे.
अहो! आत्मानी आराधनाना पंथ रागथी न्यारा
छे...वीतरागी संतोना मारगडा दुनियाथी बहु आघा छे.
सुखमय आराधना भावशुद्धिवडे पमाय छे, रागवडे ते नथी
पमाती. दुनियाथी दूर, जगतथी जुदा अंदरना स्वभावमां ऊंडे
घूसी जाय त्यारे वीतरागी संतोना मार्ग हाथ आवे छे.
* * * * *
जेने आत्माना आनंदनो अनुभव होय ते तो वारंवार अंदर ते आनंदनुं
चिंतन करे; पण जेने आत्माना आनंदनी खबर नथी, विषयोमां जेणे सुख मान्युं छे ते
तो ते विषयोने ज चिंतवे छे, विषयोना चिंतनमां एकक्षण पण तेने शांति नथी. अरे
भाई! आ शरीर ते तो जड–माटी–हांडकां–चामडानुं ढींगलुं छे, तेमां क्यां तारुं सुख छे?
आत्मा तो आनंदनो पर्वत छे, तेनो अनुभव कर.
आचार्यदेव कहे छे के अहो! आत्माना शुद्धभाव सहित मुनिवरो चार
आराधना पामीने मोक्षना परमसुखने अनुभवे छे. –
शुद्धभावयुत मुनि पामता आराधना–चउविधने,
पण भावरहित जे मुनि ते तो दीर्धसंसारे भमे. ९९
चैतन्यतत्त्वमां ऊंडा ऊतरीने, निर्विकल्प अनुभूति सहित आत्मानुं भान करीने
तेनी आराधना करनारा मुनिओ तो मोक्षसुखने पामे छे; पण जेने आत्मानुं भान
नथी तेने एक्केय आराधना होती नथी, ते तो संसारमां भमे छे. सम्यग्द्रष्टि–गृहस्थ
होय तोपण ते मोक्षमार्गनो आधारक छे; अने मिथ्याद्रष्टिजीव मुनि थयो होय तोपण ते
संसारी ज छे, ते मोक्षमार्गी नथी.
प्रश्न:– तेने शुभभाव तो होय छे?