: ३० : आत्मधर्म : आसो : २४९७
उत्तर:– शुभभाव होय छे पण भावशुद्धि तेने नथी; शुभभावने भावशुद्धि
कहेता नथी, अने शुभभाव कांई मोक्षनुं साधन नथी, रागथी पार शुद्धआत्मानी
अनुभूतिरूप निश्चय सम्यक्त्वादिभाव, ते ज भावशुद्धि छे, ने एवी भावशुद्धि होय त्यां
ज दर्शन–ज्ञान–चारित्र–तप एवी चतुर्विध–आराधना होय छे; तेना फळमां अनंत–
चतुष्ट सहित अरिहंतपद तथा सिद्धपद प्रगटे छे. सम्यग्दर्शन वगर तो ज्ञान–चारित्र के
तप एककेय आराधना होती नथी. मिथ्यात्वनुं फळ संसार, ने सम्यकत्वनुं फळ मोक्ष छे.
अज्ञानीओ मात्र शुभरागने भावशुद्धि मानी ल्ये छे ने तेनाथी आराधना थवानुं माने
छे; पण भाई! अनंतवार शुभराग करवा छतां आत्मानी आराधना तो तेने जराय न
थई, संसारभ्रमण ज रह्युं. केमके अशुभ अने शुभ बंने भावो अशुद्ध छे, परभाव छे,
संसारनुं कारण छे. सम्यकत्वादि शुद्धभाव तो स्वभावना आश्रये छे, राग वगरना छे,
ते मोक्षनुं कारण छे. हजी तो आत्मानो शुद्धभाव कोने कहेवाय तेनी पण जेने खबर न
होय तेने आराधना केवी? तेने तो एकलुं दुःख छे. सम्यग्दर्शन वगर आत्मानी
आराधना नथी, ने आत्मानी आराधना वगर सुख नथी. तो सुख कई रीते थाय? के
आत्मा पोते सुखथी भरेलो मोटो पहाड छे, आखो सुखनो ज पहाड छे; ते
सुखस्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–अनुभव करतां आत्मा पोते सुखरूप परिणमी जाय छे,–
आवी सुखमय आराधना भावशुद्धिवडे पमाय छे, रागवडे ते नथी पमाती.
अहो! आत्मानी आराधनाना पंथ रागथी न्यारा छे. वीतरागी संतोना
मारगडा दुनियाथी बधु आघा छे. दुनियाथी दूर एटले के जगतथी जुदा अंदरना
स्वभावमां ऊंडे ऊंडे घूसी जाय त्यारे वीतरागी संतोना मार्गनी आराधना पमाय छे.
जेने आनंदस्वरूप आत्माने साधवो होय तेने बहारनां पुण्य–पापना भावनो रस ऊडी
जाय छे. रागनो पण रस रहे ने आत्मानो आनंद पण सधाय–एम एक साथे बे वात
नहीं रहे, केमके आत्माना आनंदनी जात रागथी तद्न जुदी छे. शुभराग ते कांई
आराधना नथी. ज्यां रागनो प्रेम छे त्यां चैतन्यनी आराधना नथी, एनुं फळ तो
संसार छे. आम जाणीने हे जीव! तुं राग अने आत्मानी भिन्नताना अनुभववडे
भावशुद्धि प्रगट कर. भावशुद्धि ते ज आराधना छे, ते ज मोक्षनुं कारण छे; तेना वडे
कल्याणनी परंपरा पमाय छे, मोक्षसुख पमाय छे.
ज्यां आत्मानुं ज्ञान नथी, आत्मानो शुद्धस्वभाव शुं, ने तेनाथी विरुद्ध परभाव
शुं? तेनुं पृथ्थकरण नथी, त्यां जीवने भावशुद्धि क्यांथी थाय? ज्ञानमां रागने