Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ३३ :
अचिंत्य अद्भुत महिमाथी भरेलुं शुद्ध स्वतत्त्व
[नियमसार गा. ७७–७८–७९–८०–८१ अषाड वद १०–११]
नियमसारनी ७७ थी ८१ सुधीनी पांच गाथाने पांच रत्नो कह्यां छे. आ पांच
रत्नो आत्मानुं परमस्वरूप प्रकाशित करे छे. सकल विभावपर्यायो अने भेदभावोथी
रहित एक परमभाव ज हुं छुं एम धर्मी अनुभवे छे. आवी अनुभूतिमां सकल
विभावना कर्तृत्वनो अभाव छे.
आ अधिकार छे चारित्रनो; शुद्ध परम चारित्र कहो के परमार्थ प्रतिक्रमणादि–धर्म
कहो; ते कोने होय? के जे धर्मात्मा समस्त परभावोनी चिंता छोडीने, पोताना
शुद्धस्वरूपने जाणे छे, ने तेमां चित्तने एकाग्र करे छे, तेने शुद्ध चारित्ररूप परमार्थ
प्रतिक्रमणादि धर्म होय छे, अने ते अल्पकाळमां मोक्ष पामे छे.
ते धर्मात्मा पोताना आत्माने केवो चिंतवे छे? ए वात आ पांच सूत्र रत्नोमां
बतावे छे. ते बतावीने पछी कहेशे के भेदज्ञानवडे आवा परम तत्त्वना अभ्यासवडे
एटले के वारंवार तेना अनुभववडे मध्यस्थभावरूप चारित्रदशा प्रगटे छे. पांच
रत्नोवडे सुशोभित परम तत्त्वने जाणनारो मुमुक्षु पंचमगतिने पामे छे.
पांचरत्नो जे परमतत्त्वने प्रकाशित करे छे केवु छे? परमचैतन्य अने सुखमय
एवी पोतानी सत्तामां लीन आ आत्मतत्त्वमां नरकादि चारगतिने योग्य कोई विभावो
नथी; १४ मार्गणास्थानो, गुणस्थानो के जीवस्थानोना भेद–विकल्पो पण ते
परमतत्त्वना अनुभवमां नथी; ए बधाथी पार एकली चैतन्यभूतिवडे अनुभवातुं
परम तत्त्व हुं छुं. आवा शांतरसमय मारुं आत्मतत्त्व, तेमां संसारनो कोलाहल क््यां
छे? संसारना कलेशमय कोलाहलथी मारुं तत्त्व अत्यंत दूर छे. आम धर्मी पोताना
अंर्ततत्त्वरूप चैतन्यरत्नने अनुभवे छे. आ पांच रत्नो आवा चैतन्यरत्नने प्रकाशे छे.