Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ३५ :
हुं त्रिकाळी आनंदस्वरूप आत्मा छुं; तेमां अवतार ने भव केवा? सच्चिदानंद
प्रभु आनंदनो नाथ, तेनो जेने भेटो थयो तेने भवना अंत आवी गया.
शुद्धस्वभावमां तो भव हता ज नहीं, तेनो भेटो थतां, एटले तेनी सन्मुखता थतां,
पर्यायमां पण भवनो भाव नथी. आत्मा पोते आवी साधकदशारूपे थयो त्यां पोताने
पोतामां ज कृत–कृत्यता अनुभवाय छे, अपूर्व वेदनथी मोक्षनी निसंदेहता थाय छे.
वाह! आ साधकदशा पण परम अद्भुत छे! पूर्ण साध्यदशानी तो शी वात!
चैतन्यभावपणे ज्यां पोतामां पोतानो अनुभव थयो त्यां धर्मात्मा जाणे छे के
१४ मार्गणाना भेदोमां हुं नथी; भेदना विकल्पोमां हुं नथी. भेदने धर्मी नथी भावतो,
धर्मी अभेदने भावे छे. अभेदनी भावनाथी ते आनंदनो स्वाद ल्ये छे. अरे जीवो!
पूर्णतानो नाथ परमआत्मा अंदर ज बिराजे छे; ते तुं पोते ज छो. तारामांथी
परमात्मापणुं प्रगट थाय छे. परिणामने अंतरमां जोडीने आवा परमतत्त्वनी भावना
भावो. अंदर आवा स्वभावने लीधो (एटले के अनुभव्यो) त्यां परभावो सर्वे छूटी
ज गयेला छे. क्षयोपशमज्ञान होवा छतां, आवा अनुभवमां साधकने आत्माना
आनंदनी लहेर ऊठी छे... आखा दरिया डोल्या छे... आवी अद्भुत अलौकिक वस्तु छे.
वीतरागनो आवो मार्ग छे. तेमां वीतरागता थाय त्यारे धर्म थाय. ते वीतरागता
शुद्धात्माना अनुभवथी ज थाय छे. अरे, एकवार अंतरमां नजर करीने तारा पूर्णानंदी
भगवाननुं भजन कर के तरत तारा भवना आरा आवी जशे.
जेम चारेकोर सिंहना टोळा वच्चे घेरायेला माणस तेनाथी छूटवानो उपाय
शोधे.... ने झाड उपर चडी जाय... तेम चारेकोर चारगतिनां दुःखो अने कषायोरूपी
सिंहथी घेरायेलो आत्मा, तेनाथी छूटवा कोनुं आलंबन ल्ये? बहारमां तो कोईनुं
आलंबन नथी, अंदर कषायोथी अलिप्त पोतानो सहज चैतन्यभाव तेनुं अवलंबन
लईने ते चैतन्य–कल्पवृक्षमां आरूढ था, तो कषायोथी तारी रक्षा थशे, ने निर्भयपणे
तने तारी शांतिनुं वेदन थशे.
अरे, आवा दुःखो अने कषायो वच्चे घेरायेलो तुं, अने तने बहारमां शेनां
हरख आवे छे? हरख करवा योग्य स्थान तो पोतानो भगवान आत्मा छे; तेमां हरख
करीने रहेवा जेवुं छे, तेमां तने परम शांति थशे. शांतरसनुं सरोवर तो तुं छो. तारा
चैतन्यसरोवरना अमृतनुं पान कर!