Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 44

background image
: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ३ :
परिणतिमां रागादि हिंसाभावनो अभाव छे तेथी ते अहिंसा छे; तेमां पोताना सत्
स्वभावनो स्वीकार छे तेथी ते ज साचुं सत्य छे. तेमां एक रजकणमात्र परद्रव्यनुं के
परभावनुं ग्रहण नथी तेथी ते ज साचुं अद्रत्त छे, तेमां ज परमब्रह्मस्वरूपमां रमणता
होवाथी, ने परना संसर्गनो तद्न अभाव होवाथी ते ज परमार्थ ब्रह्मचर्य छे; तेमां
स्वद्रव्यनुं ज परि–ग्रहण छे, सर्वप्रकारे पोते पोताना स्वभावने ज ग्रह्यो छे, ते सिवाय
बीजाना ग्रहणनो अभाव छे तेथी ते ज अपरिग्रह महाव्रत छे. आम शुद्ध अंतर्मुख
परिणतिमां पांचे महाव्रत समाय छे; समिति वगेरे बधुं पण तेमां ज आवी जाय छे.
माटे आचार्यदेव कहे छे के अहो, अंतर्मुख थईने चैतन्यना आकाररूप परिणाम थया
तेमां बधुं आवी जाय छे. तेमां पछी ‘आ करुंने आ छोडुं’ एवा विधि–निषेधना
विकल्पो करवानुं रहेतुं नथी. संकल्प–विकल्पो ते तो असमाधि छे, बहिर्मुखभावो छे, ने
समाधि ते तो अंतर्मुख–आकार छे एटले के चैतन्यमां तद्रूप परिणमन छे. ते ज ज्ञाननी
उज्वळतारूप प्रायश्चित छे, ने मुमुक्षुजीवे आवुं प्रायश्चित निरंतर कर्तव्य छे.
शुद्धात्माथी जेटला बहिर्मुखभावो छे ते अग्निसमान आकुळतावाळा होवाथी
अपराध छे; तेनो जेनाथी छेद थाय ने शांत–अनाकुळ विशुद्ध चैतन्यभाव प्रगटे ते
प्रायश्चित्त छे; तेमां पोताना शुद्धआत्मानुं ज अवलंबन छे.
अहा, आत्मा तो एकला अतीन्द्रिय आनंदनो गांठडो छे... तेने खोलतां तेमांथी
जे अतीन्द्रिय आनंदमय परिणति प्रगटे छे ते धर्म छे, ते प्रायश्चित छे. अतीन्द्रिय
आनंद ज जेनुं रूप छे.–तेमां प्रवेशीने तेनुं अवलोकन करवुं ते निश्चयथी ईर्यासमिति छे.
ज्ञानस्वभावनी ज्ञानभावरूप परिणति थई तेमां सर्व अपराधनो अभाव छे तेथी ते
ज साचुं प्रायश्चित्त छे. आ प्रायश्चित्तमां खेद नथी, एमां तो अतीन्द्रिय आनंदनी मस्ती
छे, एकला शांतरसमां समाधि छे.
अहो, स्वात्म–चिंतनमां तत्पर मुनिओने निरंतर प्रायश्चित छे. जेणे अतीन्द्रिय
आनंदमां परिणतिने लीन करी तेने बहारमां पांचईंद्रियनो फेलाव संकेलाई गयो,
परिणति अतीन्द्रिय थईने अंतर्मुखाकार थई... ते जीव वीतराग भगवाननी पेढीमां
बेठो.
जे वीतरागी पेढीनुं नाम राखीने रागना वेपारथी लाभ मनावे ते तो
वीतरागनो विरोधी छे; रागना वेपारथी लाभ मानवो ते तो धरमनुं दीवाळुं काढवानो