: ८ : आत्मधर्म कारतक: २४९८:
सम्यक् चैतन्यप्रभातनो उदय जयवंत रहो.
अत्मलब्धन उत्तम अवसर
(कारतक सुद एकम सुप्रभातनुं मंगलप्रवचन नियमसार कळश १२९)
बेसता वर्षना सुप्रभातमां मंगलरूपे आत्मामां पंचपरमेष्ठीपणुं
बतावतां गुरुदेवे कह्युं के सिद्धभगवंतो, अरिहंतभगवतो वगेरे
परमेष्ठीपद छे ते आत्मामां ज छे; पंचपरमेष्ठीस्वरूप आत्मा ज छे तेथी
आत्मा पोते मंगळ छे. आवा आत्माना ध्यानथी अंदर अपूर्व शांतिनुं
वेदन थाय छे. भगवानपणुं आत्मामां विद्यमान छे ते सत् छे, तेथी तेने
ध्यावता अंदर शांतिनुं वेदन थाय छे. आवा आत्मस्वरूपने लक्षमां लेतां
सम्यक्वादि सुप्रभात प्रगटे छे ने तेना फळमां अनंत चतुष्टयस्वरूप
महान आनंदमय सुप्रभातम प्रगटे छे ते सादिअनंत रहे छे.
मंगलप्रवचनमां नियमसार कळश १२९ वांचता गुरुदेवे कह्युं के–आत्मा पोते
त्रिकाळप्रकाशमान चैतन्यसूर्य छे ते त्रिकाळ मंगल छे; तेनी सन्मुखता वडे
सम्यग्दर्शनादि चैतन्यप्रभात प्रगटे छे ते आनंदरूप छे; अने केवळज्ञान–केवळदर्शन–
अनंतसुख ने अनंतवीर्य खीली जाय छे ते महान मंगळ छे.
मंगळ प्रभात कहो के सुखमय आत्मानी लब्धि कहो. ते केम प्रगटे? आत्मामां
उपयोगने जोडतां कोई भेदविकल्प रहेता नथी, आ ज सौथी श्रेष्ठ योग–भक्ति छे. आवी
सर्वोत्तम योगभक्तिवडे, एटले के अन्तर्मुख उपयोग वडे आत्मलब्धिरूप मुक्ति थाय छे.
अहो, मंगळवर्षामां आत्मलब्धिनी वात आवी छे. आत्मानी प्राप्ति थाय
अनुभूति थाय एना जेवो बीजो कोई लाभ जगतमां नथी. बापु! संसारमां तुं
कषायोना दावानळमां जली रह्यो हतो, तेनाथी छूटीने आ चैतन्यनी अपूर्व शांतिमां
स्वभावथी भरेल वस्तु, तेनी अनुभूतिमां भेदनो अभाव छे, ने अभेदचैतन्यमां परम
आनंदनुं वेदन छे. अहा, चैतन्यवस्तु तो आनंदरूप ज होय ने! वस्तु कांई दुःखरूप
होय? आत्मा तो अतीन्द्रिय आनंदनो मोटो पहाड छे. आवा आत्मानी प्राप्तिमां
आनंदनुं वेदन छे, पण तेमां कोई भेद–विकल्प नथी. आवी अभेदअनुभूति प्रगटे ते ज
चैतन्यदीवडाथी शोभती अपूर्व दीवाळी छे. (बाकीनो भाग आवता अंके)