Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४९८ आत्मधर्म : ९ :
“जाकी मौज महिमा अपार अद्भुत है”
त्मत्त् ि प्रिद्ध
जेनो महिमा दुनियामां प्रसिद्ध छे एवा अद्भुत महिमावंत
चैतन्यतत्त्वने हे जीवो! तमे तमारामां अनुभवो. जगतमां अनंत
संतोए आवो महिमावंत आत्मा प्रसिद्ध कर्यो छे. आवुं महिमावंत
आनंदथी भरेलुं तारुं चैतन्यतत्त्व, तुं ज्यां जा त्यां तारी साथे ने
साथे ज छे, तेने देख तो ज तने आनंद थशे; पोताना आनंदस्वरूपने
देख्या वगर जगतमां क्यांक लेशमात्र सुख मळवानुं नथी.
(२४९७ आसो सुद ११, समयसार नाटक पानुं ३५९–३६०)
अहो, आ मारुं चैतन्यतत्त्व! एनो कोई अद्भुत महिमा छे. तेना आनंदनो
महिमा अपार छे, जगतमां ते सर्वश्रेष्ठ शिरोमणि छे. अनंत गुण–पर्यायो होवा छतां
निश्चयद्रष्टिमां एकरूप आत्मतत्त्व अनुभवाय छे. विकार होवा छतां आवा निर्विकार
चैतन्यतत्त्वनो अनुभव थाय छे. चैतन्यतत्त्व परम शांत छे.
पर्यायमां अमुक विभाव परिणाम छे तोपण शुद्धचैतनाशक्तिथी परिपूर्ण
शांतरसनो पिंड हुं छुं–एम साधकने पोताना आत्मानुं भान वर्ते छे. स्वभावमां ऊंडे
ऊतरतां परम शांतरसनुं वेदन थाय छे. आवुं ऊंडुं चैतन्यतत्त्व वीतरागदेवे बताव्युं छे,
तेने पोतामां देखवुं ते धर्म छे.
अहो, मारुं परम चैतन्यपणुं तो परभवथी छूटुं ने छूटुं छे, कर्मथी ते मुक्त
ज छे; स्वक्षेत्रमां ज लोकालोकनुं ज्ञान समाय छे; आवी चैतन्य स्वसत्ताने लक्षगत
करतां जे आत्मवस्तु देखाय छे तेनुं कौतुक महान छे, कोई अचिंत्य आश्चर्यकारी
वस्तु छे. अरे, आवी आत्मवस्तुनो महिमा अने गुणगान संतो अनादिथी करता
आव्या छे ने जगतमां अनंतकाळ सुधी तेनो महिमा गवाशे. जगतमां महिमावंत
वस्तुु आ चैतन्यस्वरूप आत्मा जछे. एनो महिमा अनुभव्या पछी जगतमां बीजी
कोई वस्तु महिमा–