संतोए आवो महिमावंत आत्मा प्रसिद्ध कर्यो छे. आवुं महिमावंत
आनंदथी भरेलुं तारुं चैतन्यतत्त्व, तुं ज्यां जा त्यां तारी साथे ने
साथे ज छे, तेने देख तो ज तने आनंद थशे; पोताना आनंदस्वरूपने
देख्या वगर जगतमां क्यांक लेशमात्र सुख मळवानुं नथी.
निश्चयद्रष्टिमां एकरूप आत्मतत्त्व अनुभवाय छे. विकार होवा छतां आवा निर्विकार
चैतन्यतत्त्वनो अनुभव थाय छे. चैतन्यतत्त्व परम शांत छे.
ऊतरतां परम शांतरसनुं वेदन थाय छे. आवुं ऊंडुं चैतन्यतत्त्व वीतरागदेवे बताव्युं छे,
तेने पोतामां देखवुं ते धर्म छे.
करतां जे आत्मवस्तु देखाय छे तेनुं कौतुक महान छे, कोई अचिंत्य आश्चर्यकारी
वस्तु छे. अरे, आवी आत्मवस्तुनो महिमा अने गुणगान संतो अनादिथी करता
आव्या छे ने जगतमां अनंतकाळ सुधी तेनो महिमा गवाशे. जगतमां महिमावंत
वस्तुु आ चैतन्यस्वरूप आत्मा जछे. एनो महिमा अनुभव्या पछी जगतमां बीजी
कोई वस्तु महिमा–