Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म कारतक: २४९८:
वंत लागती नथी. आवी वस्तु हुं पोते ज छुं एम अंतरमां पोताना स्वरूपनो वारंवार
परिचय करवा जेवो छे. चैतन्यतत्त्वमां भव नथी; एटले एना परिचयथी, एना
अनुभवथी भवनो अभाव थई जाय छे. अरे, तुं महिमावंत छो, तारा महिमाने तुं
जाण तो खरो. आत्मा तो आनंददायक वस्तु छे; आत्माने जाणवामां आनंदनो
अनुभव थाय छे. एनी मोज एटले अतीन्द्रिय आनंद, एना महिमानुं शुं कहेवुं? अने
एकलो आनंद नहि पण आनंद जेवा बीजा अनंत भावो (ज्ञान–श्रद्धा वगेरे) जेमां
भर्या छे–ते आत्मानी कीर्ति आ जगतमां त्रणेकाळ फेलायेली छे; आत्मानी महानता
जगतमां त्रणेकाळ वर्ते छे. जेणे आवा आत्मानो आनंद अनुभव्यो ते जगतमां गमे
त्यां हो तोपण आत्मानी महिमाने जाणतो थको आनंदने वेदे छे. नरकना संयोगमां
रहेलो सम्यग्द्रष्टि पण अंतरमां आत्मानी मुक्तिना आनंदने स्पर्शे छे. एक तरफथी
भवनुं दुःख पण देखाय छे ने बीजी तरफ अंतरमां परमआनंदथी भरेलुं मुक्तस्वरूप
पण देखाय छे. अज्ञानी जीव मोटा स्वर्गमां जाय तोपण त्यां आत्माना सुखने लेशमात्र
ते देखतो नथी. अरे भाई! तुं गमे त्यां जा, पण अंतरमां आनंदथी भरेलुं तारुं स्वरूप
तारी साथे तारामां ज छे, तेने देख तो ज तने आनंद थशे. पोताना आनंदस्वरूपने
देख्या वगर जगतमां क्यांय तने लेशमात्र सुख मळवानुं नथी.
अहा, आवो आत्मा जगतमां अनंता संतोए प्रसिद्ध कर्यो छे, अनंता संतोए
तेनां गुणगान प्रसिद्ध कर्या छे. आत्मानो अद्भुत महिमा दुनियामां सर्वत्र विजयवंत
वर्ते छे, अरे, आवो तुं पोते छो! एकवार आवा स्वरूपे तुं तने अनुभवमां तो ले.
आवा चेतननो पोतानो महिमा जेने भास्यो तेने कोई विकल्पनी, कोई संयोगनी
महत्ता भासे नहीं. चैतन्यनी आवी महत्ता जाणीने अनुभववडे तेनी प्रसिद्धि करनारा
जीवो अनादिअनंत चारे गतिमां सदा विजयवंत छे; आत्मानो अनुभव करीने तेने
प्रसिद्ध करनारा धर्माक्ष ज्ञानीओ अनादि–अनंत थया ज करे छे; चारेगतिमां एवा जीवो
सदाय होय ज छे. चैतन्यप्रभुनो अद्भुत महिमा छूपो नथी, दुनियामां प्रसिद्ध छे.
आवा प्रसिद्ध महिमावंत अद्भुत तत्त्वने हे जीवो! तमे तमारामां अनुभवो.
अनुभवमां प्रसिद्ध थयेलो आत्मा खरेखर अद्भुत छे.