कारतक: २४९८ आत्मधर्म : ११ :
सम्यग्द्रष्टिनां आठ अंगनुं सुंदर वर्णन
आखुंय चैतन्यतत्त्व जेमां उल्लसे छे एवा सम्यकत्वनो अद्भुत महिमा
अहा, चैतन्यमां अनंत स्वभावो भर्या छे, तेनो महिमा
अद्भुत छे. तेनी सन्मुख थईने रागरहित निर्विकल्प प्रतीत
करतां अतीन्द्रिय आनंदना वेदन सहित सम्यग्दर्शन थाय छे;
तेमां अनंत गुणोना निर्मळ भावो समाय छे, ते मोक्षमार्ग छे.
आवा सम्यक्त्वनी साथे धर्मीजीवने निःशंकतादि आठ गुण
केवा होय छे तेनुं आनंदकारी वर्णन आप अहीं वांचशो. आ
वर्णन पू. गुरुदेवना छहढाळा–प्रवचनमांथी लीधुं छे. (सं.)
परद्रव्योथी भिन्न पोताना शुद्ध एकत्वस्वरूपनी रुचि–प्रतीत–श्रद्धा ते
सम्यग्दर्शन छे. तेनो अद्भुत महिमा छे. एवा सम्यग्दर्शननी साथे शंकादि आठ दोषोना
अभावरूप निःशंकता वगेरे आठगुण होय छे, तेनुं आ वर्णन छे–
१. जिनवचनमां शंका न करवी.
२. धर्मना फळमां संसारसुखनी वांछा न करवी.
३. मुनिनुं मलिन शरीर वगेरे देखीने धर्मप्रत्ये धृणा न करवी.
४. तत्त्व अने कुतत्त्व, वीतरागदेव अने कुदेव, वगेरेना स्वरूपनी ओळखाण
करवी, तेमां मूढता न राखवी.
५. पोताना गुण तथा अन्य साधर्मीना अवगुणने ढांके, अने वीतरागभावरूप
आत्मधर्मनी वृद्धि करे, तेनुं नाम उपगृहन अथवा उपबृंहण अंग छे.
६. कामवासना वगेरे कारणे पोतानो के परनो आत्मा धर्मथी डगी जवानो