७. पोताना साधर्मीजनो प्रत्ये गौवत्स समान सहज प्रेम राखवो ते वात्सल्य छे.
८. पोतानी शक्तिवडे जैनधर्मनी शोभा वधारवी, तेनो महिमा प्रसिद्ध करीने
आवा निःशंकता वगेरे आठ गुणोवडे सम्यग्द्रष्टिजीव हंमेशां शंका वगेरे आठ
निःशंका श्रद्धा छे, ने एनाथी भिन्न समस्त परभावोनी के संसारनी वांछानो अभाव
छे;–तेनी साथेना व्यवहार आठअंगनुं आ वर्णन छे. सम्यक्त्वना निःशंकता आदि आठ
गुण अने शंकादिक पचीस दोषने जाणीने, गुणोनुं ग्रहण अने दोषोनो त्याग करवा माटे
आ वर्णन छे.
वात छे. ओळख्या वगर मानी लेवानी आ वात नथी. जीव शुं, अजीव शुं, वगेरे तत्त्वो
तो अरिहंतदेवे कह्या ते प्रमाणे पोते समजीने तेनी निःशंक श्रद्धा करे; अने कोई सूक्ष्म
तत्त्व न समजाय ते विशेष समजवा माटे जिज्ञासाथी प्रश्नरूप शंका करे, तेथी कांई तेने
जिनवचनमां सुंदेह नथी. सर्वज्ञकथित जैनशास्त्रोमां कह्युं छे ते साचुं हशे के अत्यारना
विज्ञानीओ कहे छे ते साचुं हशे! –एवो संदेह धर्मीने रहेतो नथी. अहा, जेने
सर्वज्ञस्वभाव प्रतीतमां आव्यो, परम अतीन्द्रिय वस्तु प्रतीतमां आवी तेने सर्वज्ञना
कहेला तत्त्वो–छ द्रव्यो, उत्पाद–व्यय–धु्रव, द्रव्य–गुण–पर्याय वगेरे (भले ते बधा
पोताने प्रत्यक्ष न थाय छतां) तेमां शंका न होय. निश्चयमां पोताना ज्ञानस्वभावरूप
आत्मानी परम निःशंकता छे, ने व्यवहारमां देव–गुरु–धर्ममां निःशंकता छे. जैनधर्म
एक ज साचो हशे के जगतमां बीजा धर्मो कहेवाय छे ते पण साचां हशे!–एवी जेने
शंका छे तेने तो स्थूळ मिथ्यात्व छे, तेने व्यवहारधर्मनी निःशंकता पण नथी. वीतरागी
जैनधर्म सिवाय बीजा कोई मार्गनी मान्यता तो धर्मीने रूंवाडेय न होय.