कारतक: २४९८ आत्मधर्म : २३ :
सुखदायक मोक्षदायक सामायिक
परम आनंदमय, स्वानुभूतिगम्य
िवशाळ गंभीर अात्मतत्त्व
(नियमसार कळश: २१९ आसो वद ७)
अरे, आ संसारमां अनादिथी दुःखी जीवने शांति माटे एक पोतानुं परम
आनंदमय तत्त्व ज आश्रयरूप छे; आवा तत्त्वना ध्यानमां जेनी ज्ञानपरिणति परिणमी
छे ते जीव अंतरमां कोई विशाळ गंभीर तत्त्वने पामे छे–के जे अत्यंत शांत छे, जेमां
दुःख के अशांतिनुं नाम पण नथी. –एवा जीवने सामायिक कहेवामां आवे छे.
अहा, मारुं आनंदमय निर्दोष तत्त्व, ते मारामां प्राप्त ज छे–एम धर्मी पोतानी
बुद्धिने अंतरमां जोडे छे; एटले मारा आवा तत्त्वनी प्राप्ति माटे बीजा कोई
रागदिभावोनुं आलंबन नथी; ते रागादि भावो तो मारा आनंदमय तत्त्वथी दूर–दूर
छे. आवा तत्त्वने ध्यावतां अंतरमांथी परम आनंद आवे छे, ने ते ज दुःखथी मुक्त
थवानो उपाय छे.
मारी परिणति तो ज्ञान अने आनंदरूपे थाय–एवो ज हुं छुं; बाकी रागादिनी
कोई वृत्तिओमां मारो आत्मा परिणमतो नथी. विकल्पना वेदनमां आत्मा आवतो
नथी; सम्यग्दर्शन अने आनंद तेने ज थाय छे के जे पोतानी बुद्धिने, पोताना
ज्ञानपरिणामने विकल्पथी पार करीने अंतरमां परमतत्त्वमां परिणमावे छे.
आनंदमय आत्मा विकल्पने गोचर नथी, ए तो शुद्धात्माने आश्रित एवा
परिणामने ज गोचर छे.
परम आनंदमय आत्मतत्त्व एवुं कोई विशाळ छे के जे गंभीर तत्त्व पोतानी
स्वानुभूतिरूप शुद्ध परिणतिने ज गम्य थाय छे, बीजी कोई रीते ते गम्य थतुं नथी.
अहा, सम्यग्द्रष्टिनी अंर्तपरिणतिमां अनंता सागर जेटला आनंदथी