Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म कारतक: २४९८:
डोलतुं आखुं विकाळ तत्त्व अनुभवमां आवी गयुं छे. आवा महान तत्त्वमां, के तेनी
अनुभूतिमां दुःखनुं तो कोई नामनिशान नथी. दुःखथी दूर अने परम आनंदना
सागरथी भरपूर विशाळ गंभीर तत्त्व धर्माक्षए पोतामां देखी लीधुं छे के अहो! आ
परमतत्त्व हुं ज छुं. आ तत्त्व स्वानुभूति वगर जगतना जीवोने मनथी के वचनथी दूर
छे. परम शांतरसमां डुबेलुं आ तत्त्व विकल्पनी अशांतिमां केम आवे? चैतन्यनो मार्ग
विकल्पथी दूर छे. चैतन्यनी गति विकल्पथी न्यारी छे. बापु! आवा तारा तत्त्वनो कोई
अचिंत्य परम महिमा छे तेने लक्षमां छे; तो तेना आश्रये एकाग्रता वडे निर्विकल्प
आनंदमय परम वीतरागी समभावरूप सामायिक प्रगटे. ए ज सामायिक सुखदायक ने
मुक्तिदायक छे.
परम आनंदनुं धाम आत्मा पोते छे. तेमां जे परिणति
ढळी छे ते परिणति उपशमादि शुद्धभावरूप थयेली छे, ने
रागादि उदयभावोनो तेमां अभाव छे. रागना अवलंबने तो
आत्मध्यान थतुं नथी, पण जे उपशमादि पर्यायो, ते पर्यायोना
अवलंबने पण आत्मध्यान थतुं नथी. आत्माना अखंड
स्वभावना अवलंबने ते उपशमादि निर्मळ भावो प्रगटी जाय
छे. क्षायिकश्रद्धा प्रगटी ते पर्यायना अवलंबने बीजी
क्षायिकपर्याय थती नथी, ते–ते काळे अंतरना शुद्ध स्वभावरूप
परमतत्त्वना अवलंबने ज क्षायिकभाव सदा थया करे छे. एमां
रागना के परना आलंबननी तो वात ज नथी. माटे मोक्षार्थी
जीवे अंतर्मुख थईने पोताना एक सर्वोपरि परमतत्त्वनुं
अवलंबन लेवुं एटले के तेनुं ज ध्यान करवुं. ते ध्यानमां
भगवाननो भेटो थाय छे ने तेमां बधुं समाय छे.