Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म कारतक: २४९८:
अभिलाक्षी मुमुक्षु! सुख माटे तुं आवा उत्तम कार्यने शीघ्र कर. ‘रे आत्म तारो आत्म
तारो शीघ्र एने ओळखो.’
‘तीन भुवनमें जीव अनंत सुख चाहैं, दुःखतैं भयवंत’ सुख कहो के मोक्ष कहो,
ते सर्वे जीवोने वहालुं छे, अने सम्यग्दर्शन ते मोक्षमहेलनी प्रथम सीडी छे.–(मोक्ष कह्यो
निज शुद्धता) आत्माना सर्वे गुणोनी पूर्ण शुद्धा ते मोक्ष, (सर्वगुणांश ते सम्यक्त्व)
आत्माना सर्वे गुणोनी अंशे शुद्धता ते मोक्षमार्ग.
आत्मामां ज्ञानानंदस्वभाव जेवो त्रिकाळ छे तेवो पर्यायमा प्रगटे तेनुं नाम
मोक्ष, अने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र तेनुं कारण ते मोक्षमार्ग; तेमां पण मूळ
सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन एटले शुं ते बीजी गाथामां कह्युं हतुं के–
‘परद्रव्यनतें भिन्न आपमें रुचि सम्यक्त्व भला है.’
परद्रव्यथी भिन्न आत्मानी रुचि ते सम्यग्दर्शन छे. मोक्षार्थीए पहेलांं आवुं
सम्यग्दर्शन जरूर प्रगट करवुं जोईए. ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा हुं छुं; शरीरादि अजीव हुं
नथी, रागादि आस्रव पण हुं नथी; आ रीते देहादिथी तथा रागादिथी भिन्न पोताना
आत्मानी अनुभूति करतां सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन थयुं त्यारे शास्त्र भणतर के
संयम न होय तो पण मोक्षमार्ग शरू थई जाय छे. श्रीमद्राजचंद्र कहे छे के–
‘अनंतकाळथी जे ज्ञान भवहेतु थतुं हतुं ते ज्ञानने क्षणमात्रमां जात्यंतर करीने जेणे
भवनिवृत्तिरूप कर्युं ते कल्याणमूर्ति सम्यकदर्शनने नमस्कर.’
आवा सम्यग्दर्शननु साचुं स्वरूप जीव अनंतकाळमां समज्यो नथी ने विकारने
ज आत्मा मानीने तेना ज अनुभवमां रोकाई गयो छे. बहु तो पाप छोडीने शुभ–
रागमां आव्यो, परंतु शुभराग पण अभूतार्थधर्म छे, ते कांई मोक्षनुं कारण नथी, ने
तेना अनुभवथी कांई सम्यग्दर्शन थतुं नथी.
‘भूयत्थमस्सिदो खलु सम्माइठ्ठी’ छे.
बधा तत्त्वोनो साचो निर्णय सम्यग्दर्शनमां समाय छे. चैतन्यप्रकाशी ज्ञायकसूर्य आत्मा
छे, तेना किरणोमां रागादि अंधारां नथी; शुभाशुभराग ते ज्ञाननुं स्वरूप नथी. आवा
रागरहित ज्ञानस्वभावने जाणीने तेनी प्रतीत अने अनुभूति करवी ते अपूर्व
सम्यग्दर्शन छे, ते सर्वनो सार छे.
परमात्मप्रकाशमां कहे छे के अनंतकाळथी संसारमां रखडतो जीव बे वस्तु पाम्यो
नथी–एक तो जिनवरस्वामी, अने बीजुं सम्यक्त्व; बहारमां तो जिनवर–