Atmadharma magazine - Ank 337
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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कारतक: २४९८ आत्मधर्म : ५ :
“ मंगल दीपावली–प्रवचन “
मोक्ष माटेनी योग – भक्ति
जेना वडे तीर्थंकरो मोक्ष पाम्या, तुं पण तेमां आत्माने जोड!
[महावीरनिर्वाण मंगलदिन: वीर सं. २४९८ प्रारंभ: नियमसार गा. १३८]
आजे भगवान महावीर परमात्मा मोक्ष पाम्या तेनो मंगळ दिवस छे; एवा
मोक्षनी भक्ति एटले के मोक्षनी आराधना केम थाय तेनी आ वात छे.
भाई, आ तारी मुक्तिना मार्ग बतावाय छे; तारा सुखनी रीत बतावाय
छे. आत्माना शुद्ध स्वरूपमां उपयोगने जोडतां वीतरागी समरस प्रगटे छे ते ज
मोक्षनी भक्ति छे, ते ज निश्चय योगभक्ति छे. आवी भक्तिवडे उत्तम पुरुषो
मुक्तिने पाम्या छे.
आत्माने क्यां जोडवो? केवो अनुभववो? ते वात छे. अज्ञानी पोताना
आत्माने रागमां जोडीने रागने भजे छे; तेने बदले रागथी भिन्न जे अति अपूर्व
निरूपराग चैतन्यपरिणति, ते परिणतिमां आत्माने जोडवो, तेमां मोह–राग–द्वेषादि
रत्नत्रयभाव तेमां वर्ते छे. आवी अति–अपूर्व परिणतिमां आत्मानुं परिणमन ते मोक्ष
माटेनी योगभक्ति छे–एम आ सूत्रमां कह्युं छे.
अहो, कुंदकुंदाचार्य देव वगेरे संतो तो वीतराग भगवंतो हता, तेमना रचेलां
आ सूत्रो ते पण वीतरागी सूत्रो छे. तेमां कहे छे के हे भव्य? मोक्षने माटे तारा
आत्माने तारी अति अपूर्व वीतराग चैतन्यपरिणतिमां जोड; तेमां आनंदमय समरस
छे, पण तेमां विकल्प नथी, राग नथी, दुःख नथी, आवी निर्विकल्प चैतन्य विलासरूप
रत्नत्रय–परिणतिमा आत्माने जोडीने एटले के आत्माने ते रूपे परिणमावीने
भगवान महावीर मोक्षपदने पाम्या. माटे हे भव्य जीवो! हे महाजनो! तमे पण निज
आत्माने वीतरागी स्वपरिणतिमां जोडीने, परम वीतरागसुख देनारी आवी
योगभक्ति करो.