बापु! ठरवानुं ठाम तो तारो आत्मा ज छे, तेमां ठरतां तने परम शांति छे. तारुं तत्त्व
ज आनंदथी झरतुं छे.
चित्त ठरे नहीं. पण ए वखते य जो अंदर नजर करे तो ठरवानुं ठाम पोतानुं
चैतन्यधाम छे, तेमां ठरतां महान आनंद झरे छे.
तत्त्वने तुं शांति वगरनुं हलकुं करी नांखे छे. बापुं! तारुं तत्त्व एवुं हलकुं नथी; ते तो
महान्, पोते ज परम आनंदनुं धाम छे. तेने ध्याव.
मांगे छे ते जीव आत्मवश नथी पण परवश छे, तेने धर्मध्यान नथी.
थई ते पण तेवी आनंदरूप, अने विकल्प वगरनी छे. चैतन्यतत्त्व महा आनंदरूप छे,
ते पोते आनंदभावरूप परिणमे छे.
महान उदार छे. ते ज्ञानमां कर्मनी हारमाळा नथी, तेमां शुभाशुभआस्रवो नथी, तेमां
परम आनंद छे, शुद्धता छे; एटले ते उदार ज्ञानमां आस्रव–बंधनो अभाव छे, ने
संवर–निर्जरा वर्ते छे; आवुं ज्ञान आनंद–प्रमोदपूर्वक कल्याणमय एवी संपूर्णमुक्तिने
पामे छे. आवी शुद्ध ज्ञानपरिणतिवाळा मुनिवरो जयवंत छे. अरे, सम्यग्द्रष्टिने पण
पोताना पूर्ण स्वज्ञेयना स्वीकारथी आवुं उदार ज्ञान वर्ते छे; तेना ज्ञानमां पण
आस्रव–बंधनो अभाव छे, ने संवर–निर्जरा वर्ते छे; तेनुं ज्ञान पण आनंदसहित छे.
आवुं ज्ञान ते स्ववश छे, ते अवश्य करवा योग्य कार्य छे, ते ज मोक्षनुं कारण छे.