Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १८: आत्मधर्म २४९८: मागशर
चित्तने जोडे नहीं, ने विकल्पना वेदनमां चित्तने जोडे–एने आनंद के शांति क्यांथी होय?
बापु! ठरवानुं ठाम तो तारो आत्मा ज छे, तेमां ठरतां तने परम शांति छे. तारुं तत्त्व
ज आनंदथी झरतुं छे.
जेम एकनो एक वहालो दीकरो वीसवरसनी जुवानीमां मरी जाय ने पछी चित्त
एवुं उदास थई जाय के दुनियामां क्यांय चेन न पडे, सर्वत्र स्मशान जेवुं लागे, क्यांय
चित्त ठरे नहीं. पण ए वखते य जो अंदर नजर करे तो ठरवानुं ठाम पोतानुं
चैतन्यधाम छे, तेमां ठरतां महान आनंद झरे छे.
चैतन्यतत्त्वना अचिंत्य महिमाने लक्षमां लईने तेमां ठर्या विना जगतमां क्यांय
जीवने शांति मळे तेम नथी. रागमांथी शांति लेवा मांगे छे तेमां तो हे जीव! तारा
तत्त्वने तुं शांति वगरनुं हलकुं करी नांखे छे. बापुं! तारुं तत्त्व एवुं हलकुं नथी; ते तो
महान्, पोते ज परम आनंदनुं धाम छे. तेने ध्याव.
अहा, आवुं शांत मारुं सहजतत्त्व, तेमां बहारना आडंबरना विकल्पोनो
कोलाहल केवो? बहारना शुभाशुभ विकल्पोना कोलाहलमांथी चैतन्यनी शांति लेवा
मांगे छे ते जीव आत्मवश नथी पण परवश छे, तेने धर्मध्यान नथी.
अहा, चैतन्यनुं ध्यान तो बहारना कोलाहल वगरनुं, कोई अचिंत्य आनंदप्रद
छे. चैतन्यतत्त्व पोते कोलाहल विनानुं आनंदनुं धाम छे, तेना स्वीकारपूर्वक जे परिणति
थई ते पण तेवी आनंदरूप, अने विकल्प वगरनी छे. चैतन्यतत्त्व महा आनंदरूप छे,
ते पोते आनंदभावरूप परिणमे छे.
धर्मात्मानुं ज्ञान एवुं उदार छे के जेणे विकल्पथी पार थईने, परम स्वभावरूप
महा ज्ञेयनो स्वीकार कर्यो छे. विकल्पोने बाद करीने पूर्णस्वरूपनो स्वीकार करनारुं ज्ञान
महान उदार छे. ते ज्ञानमां कर्मनी हारमाळा नथी, तेमां शुभाशुभआस्रवो नथी, तेमां
परम आनंद छे, शुद्धता छे; एटले ते उदार ज्ञानमां आस्रव–बंधनो अभाव छे, ने
संवर–निर्जरा वर्ते छे; आवुं ज्ञान आनंद–प्रमोदपूर्वक कल्याणमय एवी संपूर्णमुक्तिने
पामे छे. आवी शुद्ध ज्ञानपरिणतिवाळा मुनिवरो जयवंत छे. अरे, सम्यग्द्रष्टिने पण
पोताना पूर्ण स्वज्ञेयना स्वीकारथी आवुं उदार ज्ञान वर्ते छे; तेना ज्ञानमां पण
आस्रव–बंधनो अभाव छे, ने संवर–निर्जरा वर्ते छे; तेनुं ज्ञान पण आनंदसहित छे.
आवुं ज्ञान ते स्ववश छे, ते अवश्य करवा योग्य कार्य छे, ते ज मोक्षनुं कारण छे.