साधकदशा खीली, ते अलौकिक आनंदवाळी छे; तेनुं ज्ञान महान उदार छे, ते
कोई रागथी–विकल्पथी दबातुं नथी, छूटुं ने छूटुं रहे छे. आवा ज्ञानरूप साधकदशा
प्रगटी छे ते जयवंत छे...आवी साधकदशा वडे आनंदथी अमे मोक्षने साधी रह्या छीए.
निर्दोष उपदेश चैतन्यनी सन्मुखता करावीने मुक्तिसंपदानुं कारण थाय छे.
कल्याण मनावे तेओ तो जीवने छेतरनारा छे, तेओ अवंचक नथी. भाई, रागथी लाभ
मानीश तो तुं छेतराई जईश, तारी चैतन्यसंपदा लूंटाई जशे. बापु! रागना स्वादथी
तारा चैतन्यनो स्वाद तद्न जुदो छे; ते चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद लेतां लेतां
तने मुक्ति सधाशे. श्री गुरुओनो उपदेश तो एवो छे के जे झीलता आत्मामांथी
आनंदरसनु झरणुं झरे छे. आत्मानी पूर्ण चैतन्यसंपदा बतावीने आत्माने अनंत सिद्ध
भगवंतोनी पंक्तिमां बेसाडी द्य–एवो वीतरागी गुरुओनो उपदेश छे.
मार्ग छे, बीजा कोई मार्गथी आत्माने शांतिनुं वेदन थतुं नथी.
मार्ग छे, ते ज आनंदनो मार्ग छे; तेमां जगतना कोलाहलनो बधोय उकळाट ठरी गयो
छे. आवी शांत अतीन्द्रिय दशानो अत्यंत महिमा लावीने हुं फरी फरीने तेने नमुं छुं,
फरीफरीने अंतरमां एकाग्र थईने परिणमुं छुं.
कथन तो जुओ! कुंदकुंदाचार्य–परमेष्ठी तो परमात्मा थवानी तैयारीवाळा छे, जेणे
परमात्मानो साक्षात् भेटो (बहारमां तेमज अंतरमां पण) कर्यो छे, तेमनी आ
वीतरागीवाणी परमात्मानो भेटो करावे छे.