Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४९८ आत्मधर्म : १९:
अहा, जेनुं फळ अनंतआनंद, अने ते पण सादिअनंत टकनार; तेवा महा
आनंदनुं कारण तो केवुं होय? अंतरना चैतन्यमां ऊंडे ऊतरीने तेमांथी जे निर्विकल्प
साधकदशा खीली, ते अलौकिक आनंदवाळी छे; तेनुं ज्ञान महान उदार छे, ते
कोई रागथी–विकल्पथी दबातुं नथी, छूटुं ने छूटुं रहे छे. आवा ज्ञानरूप साधकदशा
प्रगटी छे ते जयवंत छे...आवी साधकदशा वडे आनंदथी अमे मोक्षने साधी रह्या छीए.
जेणे अंतरमां ऊतरीने पोताना चैतन्यस्वभावने पर्यायमां खोल्यो छे, ने
सम्यक्त्वादि पंचाचाररूप वीतरागभावथी जेओ शोभे छे, एवा गुरुओने अवंचक–
निर्दोष उपदेश चैतन्यनी सन्मुखता करावीने मुक्तिसंपदानुं कारण थाय छे.
निर्दोष गुरु अने निर्दोष उपदेश तेने कहेवाय के जे रागथी भिन्नता करावीने,
महा आनंदधाम एवी चैतन्यसंपदामां सन्मुखता करावे. रागमां ऊभो राखीने तेनाथी
कल्याण मनावे तेओ तो जीवने छेतरनारा छे, तेओ अवंचक नथी. भाई, रागथी लाभ
मानीश तो तुं छेतराई जईश, तारी चैतन्यसंपदा लूंटाई जशे. बापु! रागना स्वादथी
तारा चैतन्यनो स्वाद तद्न जुदो छे; ते चैतन्यना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद लेतां लेतां
तने मुक्ति सधाशे. श्री गुरुओनो उपदेश तो एवो छे के जे झीलता आत्मामांथी
आनंदरसनु झरणुं झरे छे. आत्मानी पूर्ण चैतन्यसंपदा बतावीने आत्माने अनंत सिद्ध
भगवंतोनी पंक्तिमां बेसाडी द्य–एवो वीतरागी गुरुओनो उपदेश छे.
अहा, गुरुना उपदेशथी आनंदधाम आत्माने जेणे जाण्यो छे, तेणे जिनेन्द्र देवना
मार्गने जाण्यो छे. परम शांतिनो पूर्णसमुद्र एवी जे निर्वाणदशा, तेनुं कारण तो आवो
मार्ग छे, बीजा कोई मार्गथी आत्माने शांतिनुं वेदन थतुं नथी.
प्रभु! तारो आत्मा तो मोटो शांत–शीतळ वीतरागरसनो दरियो छे, तेमां डुबकी
मारतां जे शांतिनी अनुभूति थई ते ज निर्वाणनो मार्ग छे, ते ज भगवान तीर्थंकरोनो
मार्ग छे, ते ज आनंदनो मार्ग छे; तेमां जगतना कोलाहलनो बधोय उकळाट ठरी गयो
छे. आवी शांत अतीन्द्रिय दशानो अत्यंत महिमा लावीने हुं फरी फरीने तेने नमुं छुं,
फरीफरीने अंतरमां एकाग्र थईने परिणमुं छुं.
अहा, आवो मोटो आत्मा, तेना आश्रये जे ज्ञानदशा प्रगटी ते पण मोटी छे;
बाकी परना आश्रयमां तो दीनता छे. वाह! परमात्मा थवानी तैयारीवाळा योगीनुं आ
कथन तो जुओ! कुंदकुंदाचार्य–परमेष्ठी तो परमात्मा थवानी तैयारीवाळा छे, जेणे
परमात्मानो साक्षात् भेटो (बहारमां तेमज अंतरमां पण) कर्यो छे, तेमनी आ
वीतरागीवाणी परमात्मानो भेटो करावे छे.