: २४: आत्मधर्म २४९८: मागशर
संतो सोपे छे.एक जरूरी काम
(नियमसार पानुं ३०१ वीर सं. २४९८ कारतक वद ६)
हे जीव! मोक्षने माटे तारे जरूर करवा जेवुं कार्य
तारा आत्माना आश्रये शुद्धता करवी–ते ज छे...एना
सिवाय संसारना बीजां कार्यो तो अकार्य छे.
आवश्यक एटले अवश्य करवा जेवुं स्वाधीन कार्य. परवश वगर एकला
स्वआत्माना वशे थतुं जे शुद्धरत्नत्रयरूप कार्य ते मोक्षने माटे आवश्यक छे.
आवी वीतरागी आवश्यकक्रिया धर्मी जीवोने होय छे; आवश्यकक्रियाथी जे रहित
छे ते बहिरात्मा छे.
नानामां नाना अंतरात्मा, के मोटा अंतरात्मा, एटले के चोथाथी मांडीने बारमां
गुणस्थानपर्यंत बधाय ज्ञानीधर्मात्माओ निश्चय–व्यवहार आवश्यकक्रियाथी सहित होय
छे. अविरत सम्यग्द्रष्टिने पण शुद्धआत्मानी अनुभूतिरूप जेटली वीतरागी शुद्ध
परिणति प्रगटी छे तेटली निüय आवश्यकक्रिया छे, ने ते मोक्षनुं कारण छे. त्यां साथे
वीतरागपरमात्मानी भक्ति वगेरे व्यवहार आवश्यक होय छे.
चोथा गुणस्थाने निश्चयक्रिया न होय ने एकलो व्यवहार होय–एम नथी. त्यां
पण स्वात्माना आश्रये शुद्धभावरूप आवश्यकक्रिया एटले के मोक्षनी क्रिया वर्ते छे. ए
ज रीते पांचमां–छठ्ठा गुणस्थाने स्वाश्रये जे विशेष शुद्धता थई, निर्विकल्प शांतिनी
आवश्यक छे.–आम साधकअंतरात्माने बंने नयोना विषयरूप आवश्यकक्रियाओ होय छे.
पण तेमां जेटली स्वद्रव्याश्रित शुद्धता छे तेटली ज मोक्षनी क्रिया छे, ते ज मोक्षनो
उपाय छे.
अरे जीव! मोक्षनो महान आनंद, तेने प्राप्त करवा तारे शुं करवा जेवुं छे तेने
तो ओळख. रागादिभावो ते कांई करवा जेवुं कार्य नथी; मोक्षने माटे तारे जरूर करवा