कारण छे तेथी ते अकार्य छे. शुद्धआत्मानी अनुभूति वडे जे शुद्धता प्रगटी तेमां
प्रतिक्रमण–प्रत्याख्यान–भक्ति वगेरे बधाय आवश्यक कार्य समाई जाय छे.
छे.–आ ज मोक्षार्थीजीवनुं जरूरी काम छे. धर्मीने आनाथी बहारनां बीजां
कोई रागादिभावो पोताना स्वकार्यपणे भासता नथी. अंतरात्मामां बर्हिभावोनुं काम
केवुं? अंतरात्मा तो अंतरमां वळेलो छे, तेमां तो वीतरागी शुद्धकार्य ज थाय छे...ने ते
ज तेनुं जरूरी काम छे.
स्वभावमां एकत्व करवुं ते ज बधाय अंतरात्माओनुं धर्मकार्य छे; ए ज मोक्षने माटे
आवश्यक छे. रागादिभावो होय, पण ते कांई मोक्षने माटे जरूरी नथी. जरूरी तो एटलुं
ज छे के जेटलुं अंतरनी स्वानुभूतिमां आवे. शुद्धात्मानी स्वानुभूतिथी जे बहार रही
जाय ते आत्मानुं खरूं तत्त्व नथी. आत्मानुं साचुं तत्त्व एटलुं ज छे के जेटलुं
स्वानुभूतिमां समाय छे. हे जीव! मोक्षने माटे तुं आवी अनुभूति वडे शुद्धरत्नत्रयरूप
कार्य अवश्य कर. ते तारुं स्वाधीन अने जरूरी कार्य छे.
ज मानीने प्रभुता क्यांथी लावशे?
पोताने अनुभवनार जीव दोषने दूर करीने परमात्मा थाय
छे. ‘हुं ज सच्चिदानंद परमात्मा छुं’ एम स्वभावना
पुरुषार्थनो टंकार करतां सम्यग्दर्शनादि थाय छे.