Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 28 of 45

background image
मागशर: २४९८ आत्मधर्म : २५:
जेवुं कार्य तारा आत्माना आश्रये शुद्धता करवी ते ज छे, एटले शुद्धरत्नत्रय ते
ज खरुं कार्य छे. शुद्धात्माना आश्रय वगरनां, पराश्रितभावो ते तो बधा संसारनुं
कारण छे तेथी ते अकार्य छे. शुद्धआत्मानी अनुभूति वडे जे शुद्धता प्रगटी तेमां
प्रतिक्रमण–प्रत्याख्यान–भक्ति वगेरे बधाय आवश्यक कार्य समाई जाय छे.
अहो, चैतन्यअनुभूतिमात्र आत्मा, ते परमतत्त्वने अंतरमां देखतां
कोई अद्भुत परम आनंद थाय छे...आत्मा पोताना परम शांतरसमां मग्न थई जाय
छे.–आ ज मोक्षार्थीजीवनुं जरूरी काम छे. धर्मीने आनाथी बहारनां बीजां
कोई रागादिभावो पोताना स्वकार्यपणे भासता नथी. अंतरात्मामां बर्हिभावोनुं काम
केवुं? अंतरात्मा तो अंतरमां वळेलो छे, तेमां तो वीतरागी शुद्धकार्य ज थाय छे...ने ते
ज तेनुं जरूरी काम छे.
अंतरमां परम चैतन्यभावरूप पोतानी चीज–ते कोई अचिंत्य महिमावंत छे;
तेमां उपयोगने जोडवो ने रागमांथी उपयोगने छोडवो, ए रीते रागथी विभक्त थईने
स्वभावमां एकत्व करवुं ते ज बधाय अंतरात्माओनुं धर्मकार्य छे; ए ज मोक्षने माटे
आवश्यक छे. रागादिभावो होय, पण ते कांई मोक्षने माटे जरूरी नथी. जरूरी तो एटलुं
ज छे के जेटलुं अंतरनी स्वानुभूतिमां आवे. शुद्धात्मानी स्वानुभूतिथी जे बहार रही
जाय ते आत्मानुं खरूं तत्त्व नथी. आत्मानुं साचुं तत्त्व एटलुं ज छे के जेटलुं
स्वानुभूतिमां समाय छे. हे जीव! मोक्षने माटे तुं आवी अनुभूति वडे शुद्धरत्नत्रयरूप
कार्य अवश्य कर. ते तारुं स्वाधीन अने जरूरी कार्य छे.
पामर नहीं – पण – परमात्मा
जे पोताने पामर, राग–क्रोधादि दोषरूप ज मानीने
प्रभुना (मोक्ष) लेवा मांगे छे तेने ते मळशे नहीं. पोताने पामर
ज मानीने प्रभुता क्यांथी लावशे?
पामरता वगरनो, एटले क्रोध–रागादि दोषोथी जुदो,
अनंतगुणना परमस्वभावथी भरेलो परमात्मा हुं छुं–एम
पोताने अनुभवनार जीव दोषने दूर करीने परमात्मा थाय
छे. ‘हुं ज सच्चिदानंद परमात्मा छुं’ एम स्वभावना
पुरुषार्थनो टंकार करतां सम्यग्दर्शनादि थाय छे.