बतावीने आनंदित करे छे. जे समयसारनुं भावश्रवण करतां
भवनो पार पमाय... अशरीरी थवाय... ने आत्मा पोते परम
आनंदरूप बनी जाय–एवा परम जिनागम समयसारनुं श्रवण
करवुं ते जीवननो सोनेरी प्रसंग छे. मात्र एकबेवार नहीं पण
आजे तो सत्तरमी वार प्रवचन द्वारा पू. गुरुदेवना श्रीमुखथी
आपणने आ परमागमनुं चैतन्यस्पर्शी–रहस्य सांभळवा मळे
छे, ने तेना ‘भावश्रवण’ थी आत्मा आनंदित थाय छे. अहा!
समयसारमां तो आत्मानी अनुभूतिना गंभीर रहस्यो
आचार्यभगवंतोए खोल्यां छे. गुरुदेवे एकवार कहेलुं के अहो!
आ समयसारमां केवळज्ञाननां रहस्य भरेलां छे. आ
समयसारना ऊंडा भावोनुं घोलन जीवनमां जींदगीना छेल्ला
श्वास सुधी पण कर्तव्य छे.
पण पू. श्री कहानगुरुना श्रीमुखे तेना रहस्योनुं
निरंतर श्रवण–ते कोई महानयोगे आपणने मळेल छे...तो हवे
आत्मानी सर्व शक्तिथी परिणामने तेमां एकाग्र करीने...
क्षणक्षण पळ–पळ तेना वाच्यरूप शुद्धात्मानो रस वधारीने
अंतरमां परमशांत आनंदनी अनुभूतिनुं झरणुं प्रगट करो...ए
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