प्रकार छे, तेमां हीनाधिकता होय तेथी शुं? अंदर धर्म चीज जुदी छे. आ रीते देह अने
आत्माना धर्मोनुं भिन्नभिन्नपणुं जाणे तेने देहादिनी हीनता देखीने पण धर्मात्माना
गुणोप्रत्ये अणगमानो भाव थतो नथी पण गुणनो प्रेम आवे छे. आवुं सम्यक्त्वनुं
त्रीजुं अंग छे.
आत्माना हितनो सत्यमार्ग जेणे जाण्यो छे एवो धर्मी जीव साचा–खोटानी
बराबर ओळखीने ते खोटा मार्गनी प्रशंसा पण छोडे छे. अंतरमां तो खोटा मार्गने
दुःखदायक जाणीने छोड्यो ज छे, ने मनथी–वचनथी के कायाथी पण ते कुमार्गनी प्रशंसा
के अनुमोदन करतो नथी. कुमार्गने घणा लोको सेवता होय, मोटा राजा–महाराजा सेवता
होय तो पण धर्मी मुंझाय नहीं के एमां कांईक साचुं हशे!–आवुं अमूढद्रष्टिपणुं एटले के
मूढतारहितपणुं धर्मीने होय छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे वीतरागधर्म, ते सिवाय बीजा कोई धर्मने ते
आवतो होय तोपण धर्मीने मार्गनी शंका पडती नथी, के तत्त्वमां ते मुंझातो नथी.
निश्चय जे पोतानुं शुद्धात्मस्वरूप तेमां तो मुंझातो नथी, ने व्यवहारमां एटले के देव–
गुरु–शास्त्र–तत्त्व वगेरेना निर्णयमां पण ते मुंझातो नथी. सुखनो मार्ग एवो
वीतराग–जैनमार्ग, अने दुःखनो मार्ग एवा कुमार्गो, तेमनी अत्यंत भिन्नता
ओळखीने कुमार्गनुं सेवन–प्रशंसा–अनुमोदना सर्वप्रकारे छोडे छे.