निंदा थवा देता नथी. दोषने दूर करवो ने वीतराग गुणोनी वृद्धि करवी ते
सम्यक्त्वनुं अंग छे, एटले सम्यग्द्रष्टिने एवो भाव सहेजे होय छे. जेम माताने
पोतानो पुत्र वहालो छे एटले ते तेनी निंदा सहन करी शकती नथी, तेथी तेना दोष
छुपावीने गुण प्रगटे तेम ईच्छे छे, तेम धर्मीने पोतानो रत्नत्रयधर्म वहालो छे, तेथी
रत्नत्रयमार्गनी निंदाने ते सही शकतो नथी, एटले धर्मनी निंदा दूर थाय ने धर्मनो
महिमा प्रसिद्ध थाय–एवो उपाय ते करे छे. दोषने ढांकवा–दूर करवा, अने गुणने
वधारवा ए बंने वात आ पांचमां अंगमां आवी जाय छे, तेथी तेने उपगूहन
अथवा उपबृंहण कहेवाय छे.
मारा गुणने जाणे तो ठीक पडे–एवुं कांई धर्मीने नथी. धर्मी पोताना आत्मामां तो
पोताना गुणनी प्रसिद्धि (प्रगट अनुभूति) बराबर करे, पोताना सम्यक्त्वादि
गुणोने पोते निःशंक जाणे, पण बहारमां बीजा पासे ते गुणोनी प्रसिद्धिवडे मान–
मोटाई मेळववानी बुद्धि धर्मीने होती नथी; तेम ज बीजा धर्मात्माओना दोषने
प्रसिद्ध करीने तेनी निंदा करवानो के तेने हलको पाडवानो भाव धर्मीने होतो नथी;
पण तेना सम्यक्त्वादि गुणोने मुख्य करीने प्रशंसा करे; आ रीते गुणनी प्रीति वडे
पोताना गुणने वधारतो जाय छे, ने अवगुणने ढांके छे तथा प्र्रयत्न वडे तेने दूर
करे छे.
युक्तिथी तेने सुधारे.–पण आनो अर्थ एवो नथी के मिथ्याद्रष्टि गमे तेवा विपरीत
कुमार्गनुं प्रतिपादन करे तोपण तेनी भूल करे छे ते तो बराबर बतावे, अने साचुं
तत्त्व केवुं छे ते समजावे.–जो एम न करे एटले के कुमार्गनुं खंडन करीने
सत्यमार्गनुं स्थापन न करे तो जीवो हितनो मार्ग क्यांथी जाणे? माटे साचा–
खोटानी ओळखाण कराववी तेमां कांई कोईनी निंदानो भाव नथी. जीवोना हित
माटे