निंदा थती होय, देव–गुरुनी निंदा थती होय–एवा प्रसंगे धर्मात्माथी रही शकाय नहीं,
पोतानी शक्तिथी तेने ते दूर करे छे.
दोष (भूमिकाअनुसार) थई जता होय, त्यां तेनी मुख्यता करीने शासननी निंदा न
थवा दे; अरे, ए तो धर्मात्मा छे, जिनेश्वरदेवना भक्त छे, आत्माना अनुभवी छे,
सम्यग्द्रष्टि छे,–एम गुणने मुख्य करीने, परिणाममां क्यांक जराक फेर पडी गयो होय ते
दोषने गौण करी नाखे छे, धर्मनी के धर्मात्मानी निंदा थवा देता नथी. अहा, आ तो
परम पवित्र जैनमार्ग...एकली वीतरागतानो मार्ग. कोई अज्ञानी जनो तेनी निंदा करे
तेथी कांई ते मलिन थई जतो नथी. आवा मार्गनी श्रद्धामां सम्यग्द्रष्टि जीव अत्यंत
निष्कंप वर्ते छे; तलवारनी तीखी धार जेवी तेनी श्रद्धा मिथ्यात्वनी कुयुक्तिओने हणी
नाखे छे, कोईपण कुयुक्तिओ वडे तेनी श्रद्धा चलायमान थती नथी.–आवा मार्गने
जाणीने जे धर्मी थयो छे एवा जीवने कोई दोष थई जाय तो तेना उपगूहननी आ वात
छे. ज्यां गुण अने दोष बंने होय तेमां गुणनी मुख्यता करीने दोषने गौण–करवो–ते
उपगूहन छे. पण ज्यां साचो मार्ग होय ज नहीं अने मिथ्यामार्गने ज धर्म मनावी
रह्या होय तेने तो जगतना हित माटे प्रसिद्ध करीने बतावे के आ मार्ग खोटो छे,
दुःखदायक छे, माटे तेनुं सेवन छोडो, अने परम सत्य वीतराग जैनमार्गने सेवो.
पोतामां पण रत्नत्रयधर्मनी शुद्धी जेम वधे तेम करे. दुनिया साथे मारे काम नथी, मारे
तो मारा आत्मामां शुद्धता वधे ने वीतरागता थाय ते ज प्रयोजन छे,–आवी
भावनापूर्वक धर्मी पोताना धर्मनी वृद्धि करे छे; तेने उपबृंहणगुण कहेवाय छे.
गुणनी शुद्धि वधे छे?–ने दुनिया न देखे तेथी कांई मारा गुणनी शुद्धि अटकी जाय छे?–
ना. मारा गुण तो मारामां छे.–आम धर्मी पोताना गुणनो ढंढेरो जगत पासे नथी
पीटता. मने गुण प्रगट्या ते बीजा जाणे ने प्रसिद्ध थाय तो ठीक एवी तेने भावना
नथी. कोई धर्मात्माना गुणोनी जगतमां सहेजे प्रसिद्ध थाय–ते