Atmadharma magazine - Ank 338
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३२: आत्मधर्म २४९८: मागशर
जुदी वात छे, पण धर्मीने तो पोतामां ज समावानी भावना छे; ‘दुनियामां बहार
पडवानुं शुं काम छे?’ दुनिया स्वीकारे तो ज मारा गुण साचा एवुं कांई नथी, ने
दुनिया न स्वीकारे ते कांई मारा गुणने नुकशान थई जतुं नथी. मारा गुण कांई में
दुनिया पासेथी नथी लीधा, मारा आत्मामांथी ज गुण प्रगट कर्यां छे, एटले मारा
गुणमां दुनियानी अपेक्षा मने नथी. आम धर्मी जगतथी उदास निजगुणमां निःशंक
वर्ते छे.
कोईने विशेष जातिस्मरणादि ज्ञान थाय, ज्ञाननी शुद्धि साथे लब्धिओ पण
प्रगटे, घणा मुनिओने विशेष लब्धिओ प्रगटे, अवधि–मनःपर्ययज्ञान पण थाय, छतां
जगतने तेनी खबर पण न पडे, ए तो पोते पोतामां आत्मानी साधनामां मशगुल
वर्तता होय. पोतानी पर्यायमां पोताना गुणोनी प्रसिद्धि थई त्यां आत्मा पोते
पोताथी ज संतुष्ट ने तृप्त छे. पोताना गुणना शांतरसने पोते वेदी ज रह्यो छे, त्यां
बीजाने बताववानुं शुं काम छे? ने बीजा जीवो पण तेवी अंर्तद्रष्टि वगर गुणने
क्यांथी ओळखशे? आ रीते धर्मी पोताना गुणोने पोतामां गुप्त राखे छे; ने बीजा
साधर्मीना दोषने पण गोपावीने ते दोष दूर करवानो उपाय करे छे. भाई, कोईना
अवगुण प्रसिद्ध थाय तेथी तने शुं लाभ छे? अने एनां अवगुण प्रसिद्ध न थाय तेथी
तने शुं नुकशान छे? ‘भेंसना शिंगडा भेंसने भारे’–तेम सामाना गुण–दोषनुं फळ
एने छे, एमां तारे शुं? माटे समाजमां जे रीते धर्मनी निंदा न थाय ने प्रभावना
थाय–ते रीते धर्मी प्रवर्ते छे.
–आ बधुं तो सम्यग्दर्शनना व्यवहारमां आवी जाय छे. निश्चयमां तो पोताना
शुद्धआत्मानी प्रतीत धर्मीने सदाय वर्ते छे. कोई पण रीते, पोतामां तेमज परमां गुणनी
वृद्धि थाय ने दोष टळे,–एटले के आत्मानुं हित थाय ते धर्मनी शोभा वधे–तेम धर्मी
वर्ते छे. कोई साधीर्मीथी कोई दोष थई गयो होय ने ख्यालमां आवी जाय तो तेनो
फंफेरो न करे, तिरस्कार न करे, पण गुप्तपणे बोलावीने प्रेमथी समजावे के–जो भाई!
आपणो जैनधर्म तो महान पवित्र छे, महाभाग्ये आवो धर्म मळ्‌यो छे, तेमां ताराथी
आवो दोष थई गयो पण तुं मुंझाईश नहीं, तारा आत्माना श्रद्धा–ज्ञानमां द्रढ रहेजे.
जिनमार्ग महा पवित्र छे, अत्यंत भक्तिथी तेनी आराधना वडे तारा दोषने छेदी
नांखजे.–आम प्रेमथी तेने धर्मनो उत्साह जगाडीने तेना दोष दूर करावे छे. दोषने
छूपाववामां कांई तेना दोषने