मागशर: २४९८ आत्मधर्म : ३५:
केवळीओनी साक्षी, शास्त्र तरीके अनादिअनंतश्रुतनी साक्षी, एवा उत्कृष्ट देव–गुरु–शास्त्रनी
साक्षीपूर्वक, अने अंतरमां पोताना आत्माना स्वानुभवपूर्वक आचार्यभगवान आ
समयसारमां शुद्धआत्मानुं एकत्वस्वरूप देखाडे छे; हे भव्य! तुं स्वानुभवथी ते प्रमाण करजे.
ज्यारे ज्यारे ज्ञानी संतो द्वारा आ समयसार कहेवाशे त्यारे त्यारे अंदर तेनुं
भावश्रुतज्ञान परिणमतुं हशे. अंदरना भावश्रुतने अनुसरती आ वाणी छे. जगतमां
भावश्रुतनी धारा तो त्रणेकाळे अखंडपणे सदाय वर्ते ज छे; ने द्रव्यश्रुत पण ते भावश्रुतने
अनुसरनारुं ज छे. एटले जे जे स्थाने जे–जे शब्दो रचाय छे ते ज वखते अंतरमां तेवुं ज
भावश्रुत परिणमी रह्युं छे. ‘आत्मा ज्ञायकभाव आनंदस्वरूप छे’ एवुं द्रव्यश्रुत (वचन
अने विकल्प) परिणमे छे ते ज वखते भावश्रुतनी धारामां तेवा आत्मानुं घोलन वर्ते छे,
अंदर जेवुं स्वसंवेदन वर्ते छे तेवुं ज वाणीमां आवे छे. आवी अपूर्व संधिसहितनी आ
अलौकिक रचना छे. भावस्तव अने द्रव्यस्तवथी आत्मामां सिद्धभगवानने स्थापीने, एटले
के साध्यरूप शुद्धआत्माने लक्षमां लईने, आ श्रुत–केवळीनी वाणीनुं श्रवण करतां तारा
मोहनो नाश थशे ने अपूर्व आनंद–सहित तने शुद्धात्मानो अनुभव थशे–एवा कोलकरार छे.
• ए पांडवो बळ्या नथी.ठर्या छे •
पांच पांडव मुनिभगवंतो ज्यारे शत्रुंजय पर आत्मध्यानमां
एकाग्र छे, ने दुर्योधननो भाणेज धगधगता लोढाना दागीना पहेरावीने
उपसर्ग करे छे–जेनाथी तेमनो देह बळी जाय छे; पण ते वखते–
ए पांडवो बळ्या नथी, तेओ तो चैतन्यनी परम शांतिमां ठर्या
छे...जे शांतिना वेदनमां कषाय–अग्निनो प्रवेश ज नथी...त्यां बळतरा
केवी? त्यां तो चैतन्यनी परम शीतळ महान शांतिनो सागर ऊछळे छे,
तेमां लीन थईने तेओ ठर्या छे.
वाह रे वाह! शांतिनुं सरोवर चैतन्यधाम! जेनी शांतिना
वेदनमां जगतना कोई दुःखनो प्रवेश नथी.
आवी शांतिनो पिंड हुं छुं–एम जे धर्मी वेदे छे ते जगतमां सुखी छे.
आवी शांतिनो मार्ग ए तो बहादूरोनो मार्ग छे; आ कायरनो
मार्ग नथी, आ तो वीरनो मार्ग छे.