तारी आराधनामांथी डगीश मा. आ जैनशासनमां कहेला
परम गंभीर चैतन्यतत्त्वने कोईक विरला ज अनुभवे छे.
माटे लौकिकजीवोनो संग छोडीने तुं एकलो तारा स्वकार्यमां
तत्पर रहेजे ने अंतरमां तारा ज्ञाननिधानने भोगवजे.
जगत तारी प्रशंसा करे के निंदा करे–तेनी सामे जोवा ऊभो न
रहीश. परम आनंदभावथी उल्लसता तारा तत्त्वमां सन्मुख
थईने तेने ज साधजे. आत्माने साधवामां लोकनो भय
राखीश नहीं.
माटे आवा उत्तम स्वकार्यने निरंतर साधवुं.–कई रीते साधवुं? ते कहे छे.
एवा शुद्धभावरूप क्रिया ते ज मोक्षना कारणरूप क्रिया छे, एटले परमात्मतत्त्वमां
परिणतिनी एकाग्रता ते ज मोक्षनी सत् क्रिया छे; बीजी कोई शुभाशुभ क्रियाओ मोक्षनुं
कारण नथी.–आम बराबर जाणीने मुमुक्षुए पोताना एकत्वमां रहीने स्वकार्यने
साधवुं. आवी साधना चोथा गुणस्थानथी शरू थाय छे.
छूटीने, पोताना स्वतत्त्वनो ज प्रेम छे, ने तेने ज साधवामां ते तत्पर छे.