Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : पोष : २४९८
अहा, मारो आत्मा आवुं महानतत्त्व, जेमांथी एकली शांति ज प्रगटे,
तेमां एकाग्र थईने एकलो–एकलो हुं मारी शांतिने वेदुं, तेमां जगतना कोई
बीजाना संगनुं मारे शुं काम छे? मारी शांति कोई परना संगमांथी नथी आवती;
परसंगरहित, एकलो पोतामां ज रहीने हुं मारी शांतिने अनुभवुं छुं. मारी
पर्याय अंतरमां वळीने मारा शुद्धतत्त्वनो ज संग करे छे–एकता करे छे; मारामां
द्रव्य ने पर्याय एवा भेदमांय हुं अटकतो नथी; परना संग वगरनो अने द्वैतना
विकल्प वगरनो, एकत्वमां डोलतो एकलो थईने हुं मारा मोक्षसुखने साधुं छुं;–
आ ज मारुं कार्य छे.
आ रीते स्वतत्त्वने अने तेमां एकाग्रपर्यायरूप सत् क्रियाने जाणी,
सर्वसंगथी पार एवा एकत्वचैतन्यना लक्षे एकलो थईने, मौनपणे स्वकार्यने
साधवुं. कोई अज्ञानीओ निंदा करे–ईर्षा करे, तोपण पोतानी साधनामां भंग
पाडवो नहीं. पोतानी अंतर्मुखपरिणतिने छिन्नभिन्न थवा न देवी, लोकसंबंधी
संकल्प–विकल्पोने एककोर मूकीने एकला–एकला पोताना स्वकार्यने पोतामां
साधवुं. अरे, मारा अलौकिक अचिंत्य चैतन्यतत्त्वनी अनुभूति पासे आ लोक तो
तृणसमान लागे छे. लोकना जीवो आवा चैतन्यने देखता ज नथी, पछी तेमना
वचननी शी किंमत? चैतन्यनुं कार्य शुं, चैतन्यनी साची क्रिया शुं? तेमां केवी
अकषाय शांति छे? तेनी जेने खबर नथी एवा मूर्ख जीवो कदाच तेनी निंदा करे,
तोपण धर्मीमुमुक्षुजीवो आत्माने साधवारूप निजकार्यने छोडता नथी. अहा! मारी
पर्याय अंर्ततत्त्वमां प्रवेशीने मोक्षना सुखने साधी ज रही छे, आवुं महान कार्य
अमारी पर्यायमां सधाई ज रह्युं छे, त्यां जगतनी दरकार क्यां छे? जगतनी
स्पृहा छोडीने आत्माना एकत्वमां आव्यो त्यारे तो आवा सम्यक्त्वादि महान
कार्य थयुं छे. तेमां हवे लोकभयथी धर्मीजीव भंग पडवा देता नथी.
भाई, मोक्षनी क्रिया तो पर्याय छे, ने ते पर्याय अंतरना शुद्धतत्त्वने आश्रित छे.
मोक्षनी साची क्रिया ते शुद्ध पर्याय छे ने ते पर्यायरूपे आत्मा पोते थाय छे, तेमां
परसंग नथी, वचनविकल्प नथी, एकला पोताना परमात्मतत्त्वनुं ध्यान छे. आवी
सत्य क्रियाने जाणीने हे मुमुक्षु! तुं लोकथी निरपेक्षपणे एकलो–एकलो तेने निरंतर
साधजे. जगत एने जाणे के न जाणे, प्रशंसा करे के निंदा करे, तेनी सामे जोवा ऊभो न
रहीश, परम आनंदभावथी उल्लसतुं तारुं तत्त्व तेनी सन्मुख थईने तेने ज साधजे.
आत्माने साधवामां लोकनो भय राखीश नहीं.