रहेजे...आनंदथी तेने आराधजे. जगतना भयथी तुं तारी आराधनामांथी डगीश मा. हे
मुमुक्षु! निर्विकल्प थईने तारी परिणतिने परम आनंदमय पोताना सहज तत्त्वमां
जोडजे.
परमआत्मज्ञानी जीव लोकनिंदाना भयने छोडे छे; लोको भले गमे तेम बोले, निंदा करे,
तिरस्कार करे, ए तो बधुं संसारमां चाल्या ज करे, तेमां मने शुं? हुं तो मारा
परमात्मतत्त्वना शाश्वत सुखने मारामां साधी ज रह्यो छुं. आवा परमात्मतत्त्वने नहीं
जाणनारा पशु जेवा जीवो गमे तेम बोले तेनी किंमत शुं? मारा चैतन्यतत्त्वना सुख
पासे दुनिया तो तरणां जेवी छे. आम जेणे पोताना परम चैतन्यसुखनो रस अंतरमां
चाख्यो छे ते मुमुक्षुने बाह्यविकल्पो के लोकनो संग गमतो नथी; तेनी परिणति पोताना
अंर्त–आत्मतत्त्व सिवाय बीजे क्यांय ठरती नथी, बीजे क्यांय तेने सुख लागतुं नथी.
अरे, मारा चैतन्यसुखने जगतनी अपेक्षा ज नथी पछी तेनो भय केवो? आम
निर्भयपणे, जगतथी निरपेक्षपणे धर्मी पोताना परमतत्त्वने साधे छे. अरे, लोकने राजी
आत्माना आनंदना वेदन माटे, लोकसंग छोडीने एकलोएकलो चैतन्यना एकत्वने
साधी रह्यो छुं.
ते दुष्ट जीवो कांई पण बगाडी शकता नथी. क्षमारूपी उत्तम
ढालनी सामे गमे तेवा उपद्रवनो प्रहार व्यर्थ जाय छे. माटे
आत्मानी शुद्धतानी सिद्धि अर्थे सदा उत्तम क्षमा धारण
करवी अने दुष्ट–शत्रु उपर पण कदी क्रोध न करवो,–ते
उत्तमपुरुषोनुं कर्तव्य छे. (–पांडववत्)