Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 57

background image
: १२ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
अंतरमां तारा ज्ञाननिधानने भोगवजे. तारा सहज तत्त्वनी आराधनामां तुं अछिन्न
रहेजे...आनंदथी तेने आराधजे. जगतना भयथी तुं तारी आराधनामांथी डगीश मा. हे
मुमुक्षु! निर्विकल्प थईने तारी परिणतिने परम आनंदमय पोताना सहज तत्त्वमां
जोडजे.
‘आत्मप्रवाद’ एटले आत्मानुं स्वरूप प्रतिपादन करनारां जे शास्त्रो, तेमां
कहेला परमात्मस्वरूपने जाणीने जे मुमुक्षु पोते आत्मज्ञानरूपे परिणम्यो छे, एवा
परमआत्मज्ञानी जीव लोकनिंदाना भयने छोडे छे; लोको भले गमे तेम बोले, निंदा करे,
तिरस्कार करे, ए तो बधुं संसारमां चाल्या ज करे, तेमां मने शुं? हुं तो मारा
परमात्मतत्त्वना शाश्वत सुखने मारामां साधी ज रह्यो छुं. आवा परमात्मतत्त्वने नहीं
जाणनारा पशु जेवा जीवो गमे तेम बोले तेनी किंमत शुं? मारा चैतन्यतत्त्वना सुख
पासे दुनिया तो तरणां जेवी छे. आम जेणे पोताना परम चैतन्यसुखनो रस अंतरमां
चाख्यो छे ते मुमुक्षुने बाह्यविकल्पो के लोकनो संग गमतो नथी; तेनी परिणति पोताना
अंर्त–आत्मतत्त्व सिवाय बीजे क्यांय ठरती नथी, बीजे क्यांय तेने सुख लागतुं नथी.
अरे, मारा चैतन्यसुखने जगतनी अपेक्षा ज नथी पछी तेनो भय केवो? आम
निर्भयपणे, जगतथी निरपेक्षपणे धर्मी पोताना परमतत्त्वने साधे छे. अरे, लोकने राजी
राखवा माटे हुं कांई करतो नथी, हुं तो मारा आत्माने राजी राखवा माटे, एटले
आत्माना आनंदना वेदन माटे, लोकसंग छोडीने एकलोएकलो चैतन्यना एकत्वने
साधी रह्यो छुं.
[आ लेखना बीजा सुंदर भाग माटे जुओ पानुं २५]
* * * * *
• क्षमारूपी मजबुत ढाल •
दुष्ट जीवो द्वारा गमे तेटलो उपद्रव थाय परंतु, जेने
कदी क्रोध ज उत्पन्न थतो नथी एवा क्षमावंत धर्मात्माओनुं
ते दुष्ट जीवो कांई पण बगाडी शकता नथी. क्षमारूपी उत्तम
ढालनी सामे गमे तेवा उपद्रवनो प्रहार व्यर्थ जाय छे. माटे
आत्मानी शुद्धतानी सिद्धि अर्थे सदा उत्तम क्षमा धारण
करवी अने दुष्ट–शत्रु उपर पण कदी क्रोध न करवो,–ते
उत्तमपुरुषोनुं कर्तव्य छे. (–पांडववत्)