करतां अतीन्द्रिय आनंदना वेदन सहित सम्यग्दर्शन थाय छे;
तेमां अनंत गुणोनां निर्मळ भावो समाय छे, ते मोक्षमार्ग छे.
केवा होय छे तेनुं आनंदकारी वर्णन चाले छे. पांच अंगनुं
वर्णन आप अहीं वांचशो. आ वर्णन पू. गुरुदेवना छहढाळा–
प्रवचनमांथी लीधुं छे. (सं.)
होय तो प्रेमपूर्वक वैराग्य–उपदेशथी के बीजा अनेक उपायथी धर्ममां तेने स्थिर
करवो, पोताना आत्माने पण धर्ममां द्रढ करवो ने बीजा साधर्मीने पण धर्ममां द्रढ
करवो–ते स्थितिकरण छे. शरीरमां कोई तीव्र रोग आवे, वेपारमां अचानक मोटी
खोट जाय, स्त्री–पुत्रादिनुं मृत्युं थयुं होय, कोई विशेष मान–अपमाननो प्रसंग
बन्यो होय, त्यां पोताना परिणामने शिथिल थता देखे तो धर्मात्मा तरत ज्ञान–
वैराग्यनी भावना वडे पोताना आत्माने धर्ममां द्रढ करे के अरे आत्मा! आ तने
शुं थयुं? आवो महा पवित्र रत्नत्रयधर्म पामीने आवी कायरता तने शोभती नथी.
तुं कायर न था; अंतरमां शुद्धआत्मस्वरूप देख्युं छे तेनी फरीफरीने भावना कर.
संसारना दुर्ध्यान वडे तो अनंत