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अध्यात्म–शास्त्रोनी रचनाद्वारा जिनशासननी महान प्रभावना करी छे, ने लाखो
जीवो उपर उपकार कर्यो छे. समंतभद्रस्वामी, अकलंकस्वामी वगेरेए पण
जैनधर्मनी महान प्रभावना करी छे. धर्म उपर संकट आवे त्यां धर्मीजीव झाल्यो
न रहे, जेम शूरवीर योद्धो युद्धमां छानो न रहे, तेम धर्मात्मा धर्मप्रसंगे छानो न
रहे; धर्मनो महिमा प्रसिद्ध थाय एवा कार्योमां ते उत्साहथी पोतानी मेळे ज वर्ते.
देव–गुरु–शास्त्रना कार्योमां, तीर्थोना कार्यमां के साधर्मीजनोना कार्यमां पोतानी
शक्तिअनुसार होंशथी प्रवर्ते. आवो शुभराग होय छे, छतां तेनी मर्यादा पण
जाणे छे के आ राग छे ते कांई मने मोक्षनुं साधन नथी. राग वडे मने के बीजाने
लाभ नथी. एटले तेने रागनी भावना नथी पण वीतरागमार्गनी प्रभावना अने
पुष्टिनी ज भावना छे. अहा, आवो सुंदर वीतरागमार्ग! ने आवा मार्गने
साधनारा आ मारा साधर्मी भाई! आम पोताना साधर्मी भाई–बेन प्रत्ये
उमळको आवे छे. ते साधर्मीनो अपवाद थवा न दे. वाह, जुओ तो खरा!
अंर्तद्रष्टिपूर्वक वीतरागमार्गमां व्यवहारनो पण केटलो विवेक छे! आवो व्यवहार
पण अंदरमां यथार्थ मार्गनुं भान करे तेने ज समजाय तेम छे. सम्यकत्वना आ
आठे अंगद्वारा धर्मीजीव पोतामां वीतरागमार्गनी पुष्टि करे छे, तेनी अनुमोदना
करे छे, तेनो महिमा वधारे छे, ने सर्व प्रकारे तेनी प्रभावना करे छे, प्रभावना–
अंग माटे वज्रमुनिनुं उदाहरण शास्त्रमां प्रसिद्ध छे. आ रीते सम्यकत्वना आठ
अंग कह्या. आवा आठगुणो सहित शुद्धसम्यकत्वने आराधवुं, अने तेनाथी विरुद्ध
जे शंकादिक आठदोषो तेनो त्याग करवो.
प्रभावना शेनी करशे? अहो, जिनमार्ग कोई अद्भुत अलौकिक छे; ईन्द्रो, चक्रवर्ती
ने गणधरो पण जेने आदरे छे–ए वीतरागमार्गनी शी वात! आवो मार्ग, अने
तेने आदरनारा साधर्मीओनो योग मळवो बहु दुर्लभ छे. आवा मार्गने पामीने
पोतानुं हित करी लेवा जेवुं छे. जेटलो रागभाव छे तेने धर्मी पोताना
स्वात्मकार्यथी भिन्न जाणे छे, ने निश्चय सम्यकत्वादि वीतरागभावने ज स्वधर्म
जाणीने आदरे छे. धर्मनुं आवुं स्वरूप समजीने तेनी प्रभावना करे छे. जेओ
एकला व्यवहारना शुभविकल्पोने ज धर्म मानी ल्ये छे, ने राग वगरना
निश्चयधर्मने समजता नथी तेओने तो पोतामां