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धर्म होय तो तेनी प्रभावना करे ने? अहीं तो अंतरमां पोताना शुद्धात्मानो
अनुभव करीने निश्चयधर्म सहितना व्यवहारनी वात छे. अहा, वीतरागना सत्य
मार्गने भूलीने अज्ञानथी कुमार्गना सेवनवडे जीवो पोतानुं अहित करी रह्या छे,
तेओ ज्ञानवडे साचो मार्ग पामे अने पोतानुं हित करे–एवी भावनाथी धर्मीजीव
प्रभावना करे छे. धर्मीने आवा आठअंगरूप व्यवहार होय छे, छतां ते व्यवहारना
अवलंबने कांई शुद्धिनी वृद्धि के मोक्षनो मार्ग नथी, मोक्षनो मार्ग तो अंतरमां जे
शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वर्ते छे ते ज छे; ते ज मुख्य छे, ने बीजाने मोक्षमार्ग
कहेवो ते तो उपचार छे.–आ रीते निश्चय–व्यवहार बंने एकसाथे छे, आगळ–
पाछळ नथी.
वाणी ने राग–द्वेषथी पार थईने, भेदविकल्पोथी पण पार थईने, अंतरमां पोताना
शुद्ध एकत्वस्वरूपमां स्वसन्मुखद्रष्टि करतां सम्यग्दर्शन थाय छे, ते मोक्षमहेलनुं
नाशना उपायमां पहेलुं ज सम्यग्दर्शन छे; एना वगरनुं बधुंय जाणपणुं ने बधी
क्रियाओ निरर्थक छे. कोई पुण्यथी–शुभरागथी आवुं सम्यग्दर्शन थतुं नथी;
अंतरमां शुद्धतत्त्व छे तेने ज्ञानमां–अनुभवमां लईने निःशंक श्रद्धा करतां
सम्यग्दर्शन थाय छे. आवा निश्चय सम्यग्दर्शननी साथे साचा देव–गुरु–धर्मनी
ओळखाण, नवतत्त्वनी ओळखाण, तथा निःशंकतादि आठगुण–वगेरे व्यवहार केवो
होय छे ते बताव्युं. आ जाणीने मुमुक्षु जीवोए आठअंग सहित शुद्धसम्यकत्वने
धारण करवुं, ने शंकादिक दोषोने छोडवा.
तारो आत्मा साधवा बीजानी मदद मागीश मा.
तारी सगवड खातर बीजाना प्राण दुभावीश मा.