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जाणीने स्वभावमां एकत्वपणे परिणमीने ते जीव पोते स्वसमय थयो छे.
पर्यायरूपे परिणम्यो छे तेमां ज ते स्थित छे.–आवो स्वसमयरूप जीव ते साचो जीव छे.
ज्ञानदर्शनचारित्ररूप आत्मानो जे सत्स्वभाव हतो ते स्वभावमां एकत्वपणे आत्मा
पोताना स्वभावना सम्यक्भावरूपे परिणम्यो, एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रपर्याय
प्रगटी, ते पर्यायमां स्थित आत्मा स्वसमय छे; ते सुंदर सुशोभित छे.
जिनशासन कह्युं, आ रीते आत्मा पोताना जे शुद्धभावरूप परिणम्यो ते–रूपे ज ते छे,
एटले तेमां ज ते स्थित छे; तेने स्वसमय कहीए छीए.
ते रागादि परभावमां स्थित न रह्यो, पोताना स्वरूपमां ज तन्मय स्थिर रह्यो, तेथी ते
स्वसमय छे. आवा स्वसमयपणे आत्मा शोभे छे, ते ज एकत्वमां शोभतो थको सुंदर
छे. आवा आत्माथी भिन्न बधा परभावोने पुद्गलकर्म साथे तन्मय गणीने,
मिथ्यात्वादि अज्ञानभावमां स्थित जीवने ‘पुद्गलकर्मना प्रदेशमां स्थित’ कहीने
‘परसमय’ कह्यो छे. आवा स्वसमयने तथा परसमयने बंनेने जाणीने, पोते पोताना
आत्मस्वभावमां एकत्वपणे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमवुं ते तात्पर्य छे.
* जे स्वमां एकत्वपणे परिणमे ने स्वने एकत्वपणे जाणे ते स्वसमय छे.
* जे परमां एकत्व मानीने रागादिरूपे परिणमे ने परने एकत्वपणे जाणे ते
स्वरूप बराबर जाणवुं जोईए.