Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 23 of 57

background image
: २० : आत्मधर्म : पोष : २४९८
पहेलांं अज्ञानदशामां आत्मा मिथ्यात्वादि परभावोरूपे परिणमीने तेमां स्थित
हतो ते परसमय हतो; तेने पुद्गलकर्ममां ज स्थित कह्यो. हवे परथी भिन्न स्वने
जाणीने स्वभावमां एकत्वपणे परिणमीने ते जीव पोते स्वसमय थयो छे.
आत्मा पोतानी पर्यायमां एकत्वपणे परिणमे छे, ने तेमां ते स्थित वर्ते छे.
धर्मीने आत्मा क्यां छे? परमां नथी, रागादिमां नथी, पोते सम्यकत्वादि जे निर्मळ
पर्यायरूपे परिणम्यो छे तेमां ज ते स्थित छे.–आवो स्वसमयरूप जीव ते साचो जीव छे.
ज्ञानदर्शनचारित्ररूप आत्मानो जे सत्स्वभाव हतो ते स्वभावमां एकत्वपणे आत्मा
पोताना स्वभावना सम्यक्भावरूपे परिणम्यो, एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रपर्याय
प्रगटी, ते पर्यायमां स्थित आत्मा स्वसमय छे; ते सुंदर सुशोभित छे.
परभावोने अनुभूतिथी भिन्न कह्या, पण अनुभूति साथे आत्माने अभिन्न–
एक कह्यो. आत्मा अने तेनी अनुभूतिने अभेद करीने तेने ज शुद्धनय कह्यो, तेने ज
जिनशासन कह्युं, आ रीते आत्मा पोताना जे शुद्धभावरूप परिणम्यो ते–रूपे ज ते छे,
एटले तेमां ज ते स्थित छे; तेने स्वसमय कहीए छीए.
‘जीव’ एटले के भगवान आत्मा ज्ञान–दर्शन–आनंद एवा अनंत स्वभावरूप
एक वस्तु छे; ते ज्यारे पोतामां एकत्वपणे ज्ञान–दर्शन–आनंदस्वरूपे परिणम्यो त्यारे
ते रागादि परभावमां स्थित न रह्यो, पोताना स्वरूपमां ज तन्मय स्थिर रह्यो, तेथी ते
स्वसमय छे. आवा स्वसमयपणे आत्मा शोभे छे, ते ज एकत्वमां शोभतो थको सुंदर
छे. आवा आत्माथी भिन्न बधा परभावोने पुद्गलकर्म साथे तन्मय गणीने,
मिथ्यात्वादि अज्ञानभावमां स्थित जीवने ‘पुद्गलकर्मना प्रदेशमां स्थित’ कहीने
‘परसमय’ कह्यो छे. आवा स्वसमयने तथा परसमयने बंनेने जाणीने, पोते पोताना
आत्मस्वभावमां एकत्वपणे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमवुं ते तात्पर्य छे.
* अहीं एकत्वपणे परिणमवुं ने जाणवुं तेनुं नाम ‘समय’ छे.
* जे स्वमां एकत्वपणे परिणमे ने स्वने एकत्वपणे जाणे ते स्वसमय छे.
* जे परमां एकत्व मानीने रागादिरूपे परिणमे ने परने एकत्वपणे जाणे ते
परसमय छे.
* परसमयपणुं दुःखदायक छे, ते छोडवा माटे, अने सुखदायक एवुं
स्वसमयपणुं प्रगट करवा माटे, परथी अत्यंत जुदो आत्मा केवो छे तेनुं
स्वरूप बराबर जाणवुं जोईए.