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टकीने पोताना परिणामस्वरूपमां ते वर्ते छे. परिणामथी जुदो नथी वर्ततो, पोताना
परिणाममां ज सदाय वर्ते छे. आवा स्वरूपे जीवनुं सत्पणुं छे. आ रीते सौथी पहेलांं
ज जीवनुं सत्पणुं नक्की कर्युं.
जीवतत्त्वने जे जाणे छे ते पोतामां एकत्वपणे ज्ञान अने परिणमन करीने स्वसमयरूप
थाय छे. अहीं सर्वज्ञदेवे साक्षात् जोयेला जीवतत्त्वनुं स्वरूप सात बोलथी समजावे छे.
एकांत धु्रव, के एकांत क्षणिक एवुं कोई सत् तत्त्व नथी. सत् तेने ज कहेवाय के जे
सदाय पोताना उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यस्वभावमां रहेलुं होय. उत्पाद–व्यय ने धु्रव एवा
त्रण भाववाळु जीवनुं अस्तित्व छे; तेमांथी एक्केय भावने काढी नांखतां अस्तित्व ज
नथी रहेतुं. उत्पाद–व्यय–धु्रवस्वभावरूपे मारुं अस्तित्व छे, ने मारा स्वरूपमां कायम
रहीने हुं ज मारा परिणामस्वभावमां रहेलो छुं–एम धर्मी जाणे छे. कायम टकवुं ने
पर्यायरूप परिणमवुं–ए बंने मारो स्वभाव ज छे; ते कोई बीजाने लीधे नथी. आम
सौथी पहेलांं जीवनुं स्वाधीन उत्पाद–व्यय–धु्रवरूप अस्तित्व नक्की कर्युं. हवे ते अस्तित्व
केवा प्रकारे छे ते बतावे छे. केमके अस्तित्व तो जीव सिवायना बीजा अजीव पदार्थोमां
पण छे, तेथी जीवना अस्तित्वमां शुं विशेषता छे ते बतावीने जीवने बीजा पदार्थोथी
जुदो ओळखाव्यो छे.
जे स्वयं प्रकाशमान छे ते जीव छे. आवी ज्ञानज्योतमां राग न आवे, कर्म न
आवे, शरीर न आवे. ज्ञानदर्शनमय चैतन्यप्रकाशपणे मारुं अस्तित्व छे–एम धर्मी
अनुभवे छे. एकला