Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
उत्पाद–व्यय–धु्रव तो जडमां पण छे, पण जीवना उत्पाद–व्यय–धु्रव तो चैतन्य–भावरूप
छे; आत्मा सदाय चैतन्यपणे प्रकाशमान छे.
अहा, चेतनस्वभावपणे जे प्रकाशे तेने ज जीव कह्यो. रागरूपे वर्ते ते जीव–एम
न कह्युं. राग वगर पण ज्ञानपणे जीव प्रकाशे छे. ज्ञान ते कांई उपाधि नथी, जीवनुं
स्वरूप ज छे. विकल्प अने राग होय ते कांई जीवनुं स्वरूप नथी. चैतन्यपणुं ते रागने
लीधे नथी. रागथी जुदुं चैतन्यपणुं छे, रागना अभावमां पण ते प्रकाशे छे. आ रीते
चैतन्यसत्तारूप जीव छे.
३. अनंत धर्ममां विस्तरेल एक धर्मी – एवुं जीवद्रव्य छे.
आत्मा सत् छे, ने चैतन्यस्वरूप छे; तो शुं तेनामां एक ज धर्म छे?–ना;
चैतन्यभावमां अनंत धर्मो समाय छे; जीव पोताना चैतन्यसहित अनंतधर्मोमां
व्यापीने विस्तरेलुं एक द्रव्य छे. गुणो ने पर्यायो अनंत छे, ते अनंत धर्मोमां
एकपणे आत्मा रह्यो छे एटले धर्मीद्रव्य एक छे, पोताना अनंतधर्मोमां एकसाथे
रहेवा छतां एकद्रव्यपणे ज ते रह्यो छे. अनंतधर्मोमां रहेवाथी आत्मा कांई
खंडखंडरूप थई गयो नथी, एकद्रव्यपणे ज ते प्रगट छे. पोते एक, छतां अनंत
धर्मोमां एक साथे रहेवानी जेनी अचिंत्य ताकात छे,–एवो आत्मा छे. नित्यपणुं
तेनो धर्म छे ने परिणमन पण तेनो धर्म छे,–एम अनंतधर्मस्वरूप एक वस्तु छे.
अहा, पोताना अनंतधर्मने एकपणे लक्षमां ल्ये त्यां आत्मा रागथी छूटो पडी जाय
छे ने गुणभेदना विकल्पोथी पण पार थईने अभेद आत्मा अनुभवमां आवे छे.
‘मारामां अनंत धर्मो छे’ एवो स्वीकार स्वसन्मुख ज्ञानवडे ज थाय छे. अनंत
धर्मोने एकसाथे (गुण–भेदना विकल्प वगर) लक्षमां–प्रतीतमां लई ल्ये ते ज्ञाननी
ताकात केटली? रागमां अटकेलुं ज्ञान अनंत धर्मनो साचो स्वीकार करी शके नहीं.
राग जेटलो हुं छुं–एवी बुद्धिमां अटकेलुं ज्ञान रागवगरना अनंत गुणोने क्यांथी
स्वीकारी शकशे? अनंता जीव, एकेक जीवमां पोताना अनंत गुणो स्वाधीन, ते
वात जैनशासनमां ज छे, ने तेनो स्वीकार करनार जीवने अपूर्व भेदज्ञान थाय छे.
अरे जीव! तुं केवो छो? तारुं स्वरूप केवुं छे? तेनुं आ वर्णन वीतरागी
संतो तने संभळावे छे; अंदरमां वारंवार तेनो प्रेम–उत्साह करीने तारा स्वरूपने तुं
ओळख.