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छे; आत्मा सदाय चैतन्यपणे प्रकाशमान छे.
स्वरूप ज छे. विकल्प अने राग होय ते कांई जीवनुं स्वरूप नथी. चैतन्यपणुं ते रागने
लीधे नथी. रागथी जुदुं चैतन्यपणुं छे, रागना अभावमां पण ते प्रकाशे छे. आ रीते
चैतन्यसत्तारूप जीव छे.
व्यापीने विस्तरेलुं एक द्रव्य छे. गुणो ने पर्यायो अनंत छे, ते अनंत धर्मोमां
एकपणे आत्मा रह्यो छे एटले धर्मीद्रव्य एक छे, पोताना अनंतधर्मोमां एकसाथे
रहेवा छतां एकद्रव्यपणे ज ते रह्यो छे. अनंतधर्मोमां रहेवाथी आत्मा कांई
खंडखंडरूप थई गयो नथी, एकद्रव्यपणे ज ते प्रगट छे. पोते एक, छतां अनंत
धर्मोमां एक साथे रहेवानी जेनी अचिंत्य ताकात छे,–एवो आत्मा छे. नित्यपणुं
तेनो धर्म छे ने परिणमन पण तेनो धर्म छे,–एम अनंतधर्मस्वरूप एक वस्तु छे.
अहा, पोताना अनंतधर्मने एकपणे लक्षमां ल्ये त्यां आत्मा रागथी छूटो पडी जाय
छे ने गुणभेदना विकल्पोथी पण पार थईने अभेद आत्मा अनुभवमां आवे छे.
‘मारामां अनंत धर्मो छे’ एवो स्वीकार स्वसन्मुख ज्ञानवडे ज थाय छे. अनंत
धर्मोने एकसाथे (गुण–भेदना विकल्प वगर) लक्षमां–प्रतीतमां लई ल्ये ते ज्ञाननी
ताकात केटली? रागमां अटकेलुं ज्ञान अनंत धर्मनो साचो स्वीकार करी शके नहीं.
राग जेटलो हुं छुं–एवी बुद्धिमां अटकेलुं ज्ञान रागवगरना अनंत गुणोने क्यांथी
स्वीकारी शकशे? अनंता जीव, एकेक जीवमां पोताना अनंत गुणो स्वाधीन, ते
वात जैनशासनमां ज छे, ने तेनो स्वीकार करनार जीवने अपूर्व भेदज्ञान थाय छे.
ओळख.