Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९८ आत्मधर्म : २३ :
४. क्रमरूप वर्तता पर्यायो, अक्रमे रहेता गुणो – ते जीवनो स्वभाव छे
अनंत गुण–पर्यायो ते जीवनो स्वभाव ज छे; तेमां गुणो एकसाथे रहेनारा
अक्रम छे; ने पर्यायो उत्पाद–व्ययपणे वर्तती थकी क्रमवर्ती छे. त्रीजा बोलमां द्रव्यपणुं
कहीने अनंतधर्म तेमां समाड्या; अहीं गुण–पर्यायपणुं कहे छे. गुणो अने पर्यायो ते
बंने, आत्मानो स्वभाव ज छे. क्रमे थती पर्यायो ते पण आत्मानो स्वभाव ज छे;
पोताना स्वभावथी ज ते क्रमवर्ती पर्यायरूपे परिणमे छे, ने अनंत गुणरूपे कायम रहे
छे. एक वस्तुमां द्रव्य–गुण–पर्याय एवा भेदनो विचार आत्मानुं स्वरूप नक्की करवा
माटे होय छे, पण आत्मानी साक्षात् अनुभूतिमां द्रव्य–गुण–पर्याय ए त्रणनो भेद
नथी, एटले विकल्प नथी; त्यां तो पोतानी आनंदमय चैतन्यपरिणतिरूप परिणमीने
तेमां आत्मा अभेदपणे ठर्यो छे. ते स्वसमय छे.
आत्मा परिणमे तो छे ज सदाय, पण ज्यारे ते पोते पोताने एकत्वपणे
जाणीने परिणमे त्यारे ते सम्यकत्वादि पोताना शुद्ध भावरूप परिणमीने तेमां
स्थित थाय छे, अने तेने स्वसमय कहेवामां आवे छे. आवुं स्वसमयपणुं ते सुंदर
छे, तेमां एकत्वपणे आत्मा शोभे छे. आत्मामां पोताना द्रव्य–गुण–पर्यायोनी,
सामान्य–विशेष भावोनी अचिंत्य गंभीरता भरी छे. तेनी ओळखाण करवानी
आ वात छे.
५. स्व – परने प्रकाशे एवा एकरूप चैतन्यप्रकाशवाळो जीव छे
आत्मा स्वने, परने, जडने, चेतनने बधा पदार्थोने पोतानी चैतन्यशक्तिथी
प्रकाशे छे; बधायने जाणवा छतां पोते तो एक चैतन्यप्रकाशपणे ज रहे छे. परने–जडने
जाणतां ते जडरूप थई जतो नथी, रागने जाणतां रागरूप थई जाय एवो नथी, पण
जडने के रागने जाणवा छतां चैतन्यभाव पोते तो एक चैतन्यभावरूप ज रहे छे.
अनेक पदार्थोने जाणवा छतां चेतना पोताना एकत्वने छोडती नथी. आवा स्व–
परप्रकाशक चैतन्यसामर्थ्यवाळो पदार्थ ते जीव छे.
चेतना परथी जुदी छे, छतां जुदी रहीने पण ते परने जाणी ल्ये छे एवी तेनी
ताकात छे; तेमज ते चेतना पोते पोताने पण पोतामां तन्मय थईने जाणे छे. स्व–पर
घणा पदार्थोने जाणे छतां पोते चेतनास्वरूपमां ज तन्मय रहेतो होवाथी आत्मा
एकरूप ज छे, अनेकने जाणतां पोते अनेकरूप थई जतो नथी. सर्वने जाणे एवा