
सर्वज्ञपर्यायरूपे थयो छे; ते पण जीवनो स्वभाव छे. अनंत स्वभावोथी गंभीर एवुं
जीवद्रव्य छे. हुं ज एवी ताकातवाळो छुं के जेनुं ज्ञान स्व–परने जाणवारूप परिणमे छे,
अने छतां पोताना एकत्वने छोडतो नथी. आवो विश्वप्रकाशी अजोड चैतन्यदीवडो जीव
छे. पर्यायने–रागने–जडने जाणवुं ते कांई दोष नथी, तेने जाणतां कांई चैतन्यपर्याय
मेली थई जती नथी. सर्वने जाणवुं ए तो चैतन्यनी निर्मळतानुं सामर्थ्य छे, सहज
स्वरूप छे.–आवा तारा जीवने तुं जाण!
चैतन्य ते जीवनो असाधारण स्वभाव छे. बीजा पांचद्रव्योनां जे असाधारण–विशेष–
गुणो ते जीवमां नथी, ने जीवनो असाधारण चेतनागुण कोई बीजामां नथी; आ रीते
जीव बीजा पांचे प्रकारनां अजीवद्रव्योथी अत्यंत जुदो छे. परथी तेने अत्यंत भिन्नपणुं,
ने पोताना ज्ञानस्वभाव साथे एकपणुं छे. आवा स्वभावथी एकत्व–विभक्तपणे ते
शोभे छे. आवा असाधारण चैतन्यस्वरूप जीवने ओळखतां रागथी पण भिन्न
परिणमन थाय छे.
छे. आवा पोताना भिन्न अस्तित्वने ओळखीने भेदज्ञान करनार जीव स्वद्रव्यनी
सन्मुख सम्यग्दर्शनादि निर्मळ पर्यायरूप परिणमे छे.
होवा छतां जीव पोताना चैतन्यस्वरूपथी कदी छूटतो नथी, पोते चैतन्यपणे ज रहे
छे, चैतन्य मटीने जड कदी थतो नथी; माटे जीव सदा पोताना टंकोत्कीर्ण
चैतन्यस्वरूपमां रहेलो छे.