Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
परिणमतो थको तेमां एकत्वपणे स्थित थाय छे त्यारे ते स्वसमय छे. अहो, आ
भेदज्ञानज्योति तो त्रिलोकप्रकाशक केवळज्ञानदीवडाने प्रगट करनारी छे. अहो, जे
केवळज्ञानने आपे एवा भेदज्ञाननी ताकातनी शी वात? एककोर पोतानो
ज्ञानदर्शनमय स्वभाव, ने बीजी कोर बधाय पर द्रव्यो (–देव–गुरु–शास्त्रो–तीर्थो–
विकल्पो वगेरे बधुंय), एम अत्यंत जुदापणुं जाणे त्यारे परद्रव्यमां एकाकारता छोडीने
स्वद्रव्यमां एकता करे, एटले तेने स्वसमयपणुं थाय. पोताना चैतन्यस्वभावथी अधिक
जगतना बीजा कोई पदार्थनो के कोई रागादि परभावनो महिमा आवे, तो ते जीव ते
परपदार्थथी छूटीने स्वतत्त्वमां वळी शकशे नहीं; तेने साचुं भेदज्ञान नहीं थाय. अहीं तो
भेदज्ञान करीने स्वसमय थईने केवळज्ञान तरफ जवा मांड्यो छे तेनी वात छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते आत्मानुं स्व छे तेमां स्थित ते स्वसमय छे; क्यांय
पण परमां जेने सुखबुद्धि होय ते जीव परथी भिन्न थईने स्वमां स्थित थई शके नहि.
स्व अने परनी भिन्नताने ज जे न जाणे ते तो अज्ञानभावरूप परिणमे छे, तेने
सम्यकत्वादिमां वर्तवारूप स्वसमयपणुं नथी होतुं. एने तो कर्मपुद्गलना प्रदेशमां स्थित
कह्यो छे. चेतनामां जे स्थित नथी ते कर्ममां ज स्थित छे. बे भाग पाडीने वात करी छे.
जे पोताना ज्ञानस्वभावमां स्थित छे तेने कर्म तरफना कोई पण भावमां एकताबुद्धि
रहेती नथी; अने जेने परतरफना कोई पण भावमां एकताबुद्धि छे ते जीव पोताना
ज्ञानस्वभावमां एकत्व करी शकतो नथी.
अरे जीव! तुं तारा तत्त्वने जाणीने, परथी भिन्नता कर ने स्वमां एकता कर.
आवुं अपूर्व भेदज्ञान तने अल्पकाळमां केवळज्ञान अने सिद्धसुख आपशे. सिद्धभग–
वानने जेणे आत्मामां स्थाप्या तेने स्व–परनुं आवुं भेदज्ञान थाय ज. सिद्धमां कर्मनो के
रागनो जराय संबंध नथी तेम आ आत्मानो स्वभाव पण कर्म अने राग वगरनो छे;
आवा पोताना आत्माने जाणीने पोते पोतामां एकत्वपणे परिणमतां सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्ररूपे आत्मा स्वयं परिणमी जाय छे;जे–रूपे परिणम्यो तेमां ते स्थित थयो;
सम्यकत्वादि स्वभावरूपे परिणमीने तेमां स्थित थयो ते स्वसमय थयो. ते आत्मा पोते
पोताना स्वभावने ज स्वपणे जाणे छे ने तेमां ज एकत्वपणे परिणमे छे. आवी दशा
भेदज्ञानवडे ज थाय छे. माटे जीवनुं यथार्थ स्वरूप ओळखीने परथी भिन्नपणुं
ओळखवुं जोईए. आवुं भेदज्ञान ते केवळज्ञानविद्याने उत्पन्न करे छे.
जगतना बधा पदार्थो पोते पोताना गुण–पर्यायमां ज रहेलां छे. जीव वस्तु पण
पोतानी पर्यायमां रहे छे. जे पोतानी निर्मळपर्यायमां वर्ते छे ते स्वसमय छे; जे