Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४९८ आत्मधर्म : २७ :
स्व–परने एक मानतो थको अज्ञानपर्यायमां वर्ते छे ते परसमय छे. चोथागुणस्थाने
सम्यकत्वादि जेटली शुद्धअनुभूति वर्ते छे तेमां स्थित आत्मा स्वसमय छे. अहा,
आत्मा अनुभूतिमां आव्यो तेमां तो अनंता गुण समाई जाय छे. स्वसन्मुख
अनुभूतिमां आखो आत्मा समाई जाय छे. स्व–परनुं भेदज्ञान करीने, शुद्धपरिणति
साथे एकत्वरूपे परिणमेलो आत्मा ते स्वसमय छे. जेवो ज्ञानस्वभाव छे तेवुं
परिणमन थयुं तेमां तो आत्मा शोभे छे, ते तो आत्मानुं स्वरूप छे. पण
ज्ञानस्वभावथी विरुद्ध एवा मोहादि परभावरूपे परिणमवुं ते परसमयपणुं छे, तेमां
आत्मानी शोभा नथी.
एकत्वपणामां आत्मानी शोभा छे, पण संसारना जीवोने ते एकत्वनी
अनुभूति दुर्लभ छे; दुर्लभ होवा छतां ज्ञानीनी यथार्थ उपासनावडे तेनी प्राप्ति थई शके
छे; अने आ समयसारमां आचार्यदेवे आत्माना अद्भुत वैभवथी ते एकत्वस्वरूप
देखाडीने तेनो स्वानुभव कराव्यो छे. शुद्धआत्मानी स्वानुभूति महा आनंदमय छे ने ते
ज आ समयसारना अभ्यासनुं फळ छे.
भूतार्थस्वभाव त्रिकाळ छे, तेनी सन्मुख थईने तेनो स्वीकार करतां आत्मा
पोते पोतामां एकत्वथी सम्यग्दर्शनादिरूप परिणमे छे. ज्ञानस्वभावमां तन्मयरूप
ज्ञानभावे परिणमतो आत्मा ते साचो आत्मा छे; अने क्रोधादि परभावोमां तन्मय
थईने अज्ञान–भावरूपे परिणमतो आत्मा ते अनात्मा छे, आत्मभावनी तेने प्राप्ति
नथी थई. –आम जीवने एक स्वसमयपणुं अने बीजुं परसमयपणुं–एवी बे
अवस्थाओ छे. तेमां स्वसमयपणुं ते सुंदर छे. अनादिथी परसमयपणुं छे ते छूटीने
स्वसमयपणुं थाय–एवी वात आ समयसारमां बतावी छे. तेने हे भव्य जीवो! तमे
बहुमानपूर्वक सांभळीने लक्षमां लेजो.
* * * * *
* प्रभु! तुं महान तत्त्व छो; राग जेटलो नानकडो तुं नथी.
* तारामांथी तो अलौकिक आनंदना तरंग ऊठे एवो तुं छो.
* तारामांथी रागना के दुःखना तरंग ऊठे एवो तुं नथी.
* अंतर्मुख थतां स्वतत्त्व ज्ञान–आनंदना तरंगरूपे परिणमे छे.
* आवा आनंदमय तत्त्वनुं माप विकल्पोथी थई शके नहीं;
एनुं माप तो चेतनावडे ज थाय.–एवुं महान आत्मतत्त्व छे.