Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
परमआनंदमय सहज
तत्त्वने साधवानी रीत
मोक्षार्थीजीव स्वकार्यने कई रीते साधे छे तेनुं उत्साहप्रेरक
प्रवचन आपे पृ. ९ उपर वांच्युं; तेनो बीजो भाव आप अहीं वांचशो.
अहा, मुमुक्षुजीव जगतथी केटलो विरक्त होय छे! ने स्वकार्यने साधवा
माटे अंतरमां एकलो–एकलो केवो मशगुल होय छे! ते अहीं एवा
सरस भावथी बताव्युं छे के आत्माने पण तेवी साधनानुं तान चडे छे;
क्यांय थोडीघणी पण ढीलास होय तो ते खंखेरी नांखीने आत्माने
साधवानी शूरवीरता जागे छे. जगतना लोकमत सामे जोईने बेसी
रहेनारा जीवो आत्मामां ऊतरी शकता नथी; आत्मामां ऊंडे ऊतरनारा
जीवोने जगत सामे जोवानी फूरसद होती नथी. वाह! केवो सरस
निरपेक्ष मार्ग छे!
[नियमसार गाथा. ११५ थी ११८ ना प्रवचनोमांथी : २४९८ मागशर सुद १ थी ५]
मुमुक्षुजीवे अंतरमां एकला पोताना गंभीर चैतन्यतत्त्वनी साधना कर्तव्य
छे, अने लोक साथे वादविवाद ते कर्तव्य नथी; पोते पोतानुं काम करी लेवा जेवुं छे.
बीजाने समजाववा माटे के जैनधर्मनी प्रभावना माटे पण संकल्प–विकल्पो करवामां
अटकवुं–ते कांई मुमुक्षुनुं कर्तव्य नथी, मुमुक्षुनुं कर्तव्य विकल्पोथी पार थईने बाह्य
संगरहित एकला चैतन्यने अंतरमां साधवुं–ते ज छे. आवी साधना ते ज मोक्षमाटे
कर्तव्य छे. आवी साधना करतां–करतां वच्चेना रागनी भूमिकामां व्यवहार
प्रभावना वगेरे सहेजे थई जाय छे, पण साधकने ते रागमां कर्तृत्वबुद्धि नथी,
रागनी होंश नथी; एने तो मोक्ष माटे शुद्धरत्नत्रयरूप स्वकार्यने साधवानी ज होंश
छे, तेमां ज तत्परता छे. धर्मीजीव पोताना सहज तत्त्वने कई रीते आराधे छे तेनुं
आ वर्णन चाले छे–
निधि पामीने जन कोई निज वतने रही फळ भोगवे,
त्यम ज्ञानी परजनसंग छोडी ज्ञाननिधिने भोगवे. १५७
जेम कोई माणस पहेलांं दरिद्र होय ने परदेश गयो होय, ते कोई महाभाग्यथी