सीमंधर भगवानना श्रीमुखथी “कारध्वनिमां साक्षात् सांभळेलुं ने जाते
चैतन्यतत्त्वनी अपूर्व वीतरागवार्ता छे; सर्वज्ञ परमात्माना अलौकिक पंथनी आ वात
छे. सिद्ध जेवा पोताना आत्मानी आ वात छे. वीतरागी संतोए जाते अनुभवेलुं
आत्मानुं शुद्धस्वरूप अहीं देखाडयुं छे. अनादिसंसारनो अंत आवे ने मोक्षसुखने
साधवानी शरूआत थई जाय एवो आ मार्ग छे. तीर्थंकरो समवसरणमां जे प्रकाशे छे,
चैतन्यस्वरूप वीतरागी संतो अहीं बतावे छे, माटे हे जीव! परम बहुमानथी,
आत्माना प्रेमथी तुं आवुं स्वरूप तारा स्वानुभवगम्य करजे.
छे. एनुं नाम छे ‘आत्मभावना’ विशेष आवता अंके.