Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ३८ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
ज्ञायकभावनी
उपासना
[समयसारना अपूर्व श्रवण वडे मोक्षमार्गनो मंगल प्रारंभ]
आत्माना वैभवथी शुद्धात्मा देखाडीने आचार्यदेव कहे छे के हे
भव्य! आवा आत्माने उपासवाथी (श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवमां लेवाथी)
तारा आत्मामां अपूर्व मोक्षमार्ग शरू थशे. परथी विभक्त ने पोताना
ज्ञान–स्वभावमां एकत्व–एवा ज्ञायकस्वभावने उपासवो–ते ज आ
समयसारनुं हार्द छे. अनादिथी रागनी उपासना करी छे, रागनुं ज
सेवन कर्युं छे, पण रागथी पार ज्ञानमात्र आत्मवस्तु पोते कोण छे ते
कदी जाण्युं नथी, तेनी सेवा क्षणमात्र पण करी नथी; माटे हवे, आ
समयसारमां अमे जे शुद्धात्मा देखाडीए छीए तेने तुं ओळख, तेनी
उपासना कर...तने महा आनंद थशे.
[समयसार गाथा ६] [मागशर वद १–२–३]
* * * * *
परद्रव्योथी भिन्न ने परभावोथी भिन्न, एवो जे ज्ञायक एकभाव छे ते
आत्मा छे. आवा आत्मानुं स्वरूप जाणवुं जोईए,–तो ज शुद्धआत्मा जाण्यो कहेवाय.
प्रभो! ए शुद्धआत्मा केवो छे के जेनुं स्वरूप आप समस्त आत्मवैभवथी आ
समयसारमां देखाडवा मांगो छो?–आम शिष्यने धगश जागी छे. प्रभो! आप जे
एकत्व–विभक्त शुद्धआत्मा देखाडवा मांगो छो ते केवो छे? तेनुं स्वरूप मारे जाणवुं छे–
आवी धगशपूर्वक, आत्मानो जिज्ञासु थईने जे सांभळवा आव्यो तेने आचार्यदेव
शुद्धआत्मानुं स्वरूप देखाडे छे. आम शिष्य आत्मानो पिपासु थईने आव्यो छे; मात्र
रूढिपूर्वक रोज एक कलाक व्याख्यान सांभळी लेवुं–एम सांभळवा खातर नथी
सांभळतो, पण अंदरनी धगशथी ‘मारो शुद्धआत्मा केवो छे’ ते लक्षमां लईने सांभळे
छे. सांभळीने पछी कोई बीजाने समजावीश–एवो हेतु राखीने नथी सांभळतो; पण
श्रवणनो हेतु पोतानो शुद्धआत्मा जाणीने तेनो अनुभव करवो–ते छे. आवा शिष्यने
श्रीगुरु कहे छे के सांभळ! –