Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
स्वभावरूपे परिणमे छे; ए रीते दाहकपणुं अग्निनो पोतानो स्वभाव छे, ते
बीजा दाह्य पदार्थोने लीधे नथी.
तेम आत्मा ज्ञानस्वभावरूप होवाथी स्वयं पोते ज्ञायक छे; त्यां सामे
जेवा परज्ञेय होय तेवा ज्ञेयाकारे थईने ज्ञान पोताना ज्ञायकस्वभावने लीधे तेने
जाणे छे; अने परज्ञेय तरफ लक्ष न होय त्यारे पण स्वानुभवथी पोते पोताने
प्रकाशतो थको आत्मा पोताना ज्ञायकस्वभावरूपे परिणमे छे.–आ रीते
ज्ञायकपणुं ते आत्मानो पोतानो स्वभाव छे, बीजा ज्ञेय पदार्थोने लीधे तेने
ज्ञायकपणुं नथी. माटे परनी अपेक्षा वगरनो ज्ञायक तो ज्ञायक ज छे. ज्ञेयना
आलंबनरूप अशुद्धता तेने नथी. आ रीते परथी भिन्न पोते पोताने ज्ञायकपणे
प्रकाशतो थको आत्मा ‘शुद्ध’ छे. जेम प्रकाशस्वभावी दीवो पोते पोताने प्रकाशे
छे तेम ज्ञायकस्वभावी आत्मा स्वयं पोते पोताने ज्ञायक–भावपणे स्वसंवेदनमां
ल्ये छे. परज्ञेय होय तो ज आने ज्ञायक कहेवाय–एवुं कांई नथी, जेम बीजी
वस्तु होय तो ज दीवाने प्रकाशक कहेवाय एम नथी, बीजी वस्तु वगर दीवो
पोतेपोताने पण प्रकाशे छे, तेम परज्ञेय तरफ लक्ष वगर स्वसन्मुखपणे ज्ञायक
पोते पोताने जाणतो थको ज्ञायक ज छे. दीवो परने प्रकाशे त्यारे पण दीवो ज छे,
तेम ज्ञायक परने जाणे त्यारे पण पोते तो ज्ञायकपणे ज रहे छे, कांई पर ज्ञेयने
जाणवाथी ते अशुद्ध थई जतो नथी.
हे भाई! आवो तारो आत्मा छे; ज्ञायकपणे ज प्रकाशतो आवो
शुद्धआत्मा तुं पोते छो; तारा आवा शुद्धआत्माने तुं जाण.
आत्मानुं साचुं स्वरूप केवुं छे के जेने जाणवाथी अनादिनुं भवभ्रमण मटे
ने आत्मा सिद्धपदने पामे, तेनी आ वात छे. एवा अद्भुत माहात्म्यवाळो
आत्मा छे के जेनुं स्वरूप आचार्यदेव समस्त वैभवथी देखाडे छे. विकल्पथी जणाय
तेवो आत्मा नथी, आत्मा तो स्वानुभवरूप वैभवथी जणाय तेवो छे.
आत्मा एटले ज्ञायकभावरूप वस्तु छे ते द्रव्यस्वभावथी तो कदी
शुभाशुभ–कषायचक्ररूप थई ज नथी; अने आत्मा ज्यारे पोताना आवा
स्वभावनी सन्मुख थईने तेने अनुभवे छे–सेवे छे–त्यारे पर्याय पण शुभाशुभ–