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बीजा दाह्य पदार्थोने लीधे नथी.
जाणे छे; अने परज्ञेय तरफ लक्ष न होय त्यारे पण स्वानुभवथी पोते पोताने
प्रकाशतो थको आत्मा पोताना ज्ञायकस्वभावरूपे परिणमे छे.–आ रीते
ज्ञायकपणुं ते आत्मानो पोतानो स्वभाव छे, बीजा ज्ञेय पदार्थोने लीधे तेने
ज्ञायकपणुं नथी. माटे परनी अपेक्षा वगरनो ज्ञायक तो ज्ञायक ज छे. ज्ञेयना
आलंबनरूप अशुद्धता तेने नथी. आ रीते परथी भिन्न पोते पोताने ज्ञायकपणे
प्रकाशतो थको आत्मा ‘शुद्ध’ छे. जेम प्रकाशस्वभावी दीवो पोते पोताने प्रकाशे
छे तेम ज्ञायकस्वभावी आत्मा स्वयं पोते पोताने ज्ञायक–भावपणे स्वसंवेदनमां
ल्ये छे. परज्ञेय होय तो ज आने ज्ञायक कहेवाय–एवुं कांई नथी, जेम बीजी
वस्तु होय तो ज दीवाने प्रकाशक कहेवाय एम नथी, बीजी वस्तु वगर दीवो
पोतेपोताने पण प्रकाशे छे, तेम परज्ञेय तरफ लक्ष वगर स्वसन्मुखपणे ज्ञायक
पोते पोताने जाणतो थको ज्ञायक ज छे. दीवो परने प्रकाशे त्यारे पण दीवो ज छे,
तेम ज्ञायक परने जाणे त्यारे पण पोते तो ज्ञायकपणे ज रहे छे, कांई पर ज्ञेयने
जाणवाथी ते अशुद्ध थई जतो नथी.
आत्मा छे के जेनुं स्वरूप आचार्यदेव समस्त वैभवथी देखाडे छे. विकल्पथी जणाय
तेवो आत्मा नथी, आत्मा तो स्वानुभवरूप वैभवथी जणाय तेवो छे.
स्वभावनी सन्मुख थईने तेने अनुभवे छे–सेवे छे–त्यारे पर्याय पण शुभाशुभ–