Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
आवो ऊंचो माल लाव्या छे ने ते आ समयसार द्वारा भव्यजीवोने भेट आप्यो छे.
‘अहो! उपकार जिनवरनो, कुंदनो, ध्वनि दिव्यनो,
जिन–कुंद–ध्वनि आप्यां अहो! ते गुरुकहाननो.’
[समयसारनी छठ्ठी गाथाना चैतन्यस्पर्शी प्रवचनोनी मधुरी प्रसादी
जिज्ञासुओने आ अंकमां ज आपवा माटे आ अंकमां वधु पानां आपवामां आव्यां छे.
आम छतां सातमी गाथानां प्रवचनो आ अंकमां आवी शक्या नथी–ते हवेना अंकमां
आपीशुं. सं.
]
* * * * *
सिंह अने वांदरो
बंधुओ, आ चित्रमां
झाड उपर वांदरो छे. नीचे तेनी
छाया छे. त्यां सिंह आवे छे.
पछी शुं थाय छे ते
तमारी कल्पनाथी विचारो. ने
आ द्रष्टांत उपरथी देह अने
आत्माना भेदज्ञाननी वात तमे
शुं समज्या? ते जणावो.
सौथी उत्तम लखनारने