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आनंदने देनारो मार्ग छे. जिनोपदेशवडे आवा सुंदर जिनमार्गने अमे जाण्यो छे, अने
तेना अत्यंत महिमापूर्वक भक्तिथी अहीं तेनुं कथन कर्युं छे. अहो, आवा सुंदर मार्गने
तमे अत्यंत भक्तिथी आराधजो. अरे, संसारना घोर दुःखथी छूटवानो आवो सरस
वीतरागमार्ग प्राप्त थयो छे. आवो सुंदर मार्ग अने तेनुं उत्तम फळ ज्ञानीओनां हृदयमां
जयवंत वर्ते छे. एटले गमे तेवी प्रतिकूळताना प्रसंगमां पण ज्ञानीओ आवा मार्गने
छोडता नथी.
भक्ति–पूर्वक आराधजे. शुद्ध चैतन्य परमतत्त्वमां ज सर्वथा अंतर्मुख, अने
परद्रव्योथी अत्यंत निरपेक्ष, एवा जे राग वगरनां शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
ते ज चोक्कस मोक्षनुं कारण छे, ते ज मुमुक्षुजीवोए नियमथी करवा जेवुं कर्तव्य छे.
आवो मार्ग जिनवचनथी जाणीने, निजभावनानुं घोलन करतां करतां आ
नियमसारनी रचना थई छे. अंदर आत्मानी परिणतिमां तो शुद्धरत्नत्रयरूप
भाव–नियमसारनी रचना थई छे, ने द्रव्यश्रुतरूप आ नियमसार शास्त्र रचायुं
छे. ते भव्य जीवोने माटे सुंदर जिनमार्गने प्रसिद्ध करे छे. तेने भव्य जीवो
भक्तिपूर्वक आराधजो.–