Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४६ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
पण कोई सुंदर मार्गनी ईर्षा वडे निंदा करे,
तेनां सुणी वचनो करो न अभक्ति जिनमारग विषे. १८६
अहो, भगवाने कहेलो शुद्धरत्नत्रयमार्ग ते तो सदा आनंदरूप महा सुंदरमार्ग
छे. कारणपरमात्मतत्त्व पोते सदाय आनंदस्वरूप छे, अने तेनां श्रद्धा–ज्ञान–
आचरणरूप रत्नत्रयमार्ग पण आनंदरूप छे. आवा मार्गमां हे जीव! तुं सदा परायण
रहेजे. मिथ्यात्वादिमां परायण अज्ञानीजीवो ईर्षाथी आवा सुंदरमार्गनी पण निंदा करे
तो तेथी तुं खेदखिन्न थईने स्वरूपथी विकळ थईश मा; तुं तो परमभक्तिथी मार्गनी
आराधनामां ज तत्पर रहेजे...अचल रहेजे...डगीश मा.
‘अरे, आवो ते कांई मार्ग होय! रागथी कांई लाभ नहि, परनुं करवानी कांई
वात नहीं,–एकला आत्मानी ज वात! आवो मार्ग होय?’–एम कोई अज्ञानी जनो
आवा सुंदर मार्गनी पण निंदा करे, ईर्षा करे, द्वेषभाव राखे, तेथी गभराईने तुं आवा
उत्तम मार्गने छोडीश नहीं, मार्ग प्रत्ये जरापण अभक्ति के मंद उत्साह न करजे, परम
भक्तिथी मार्गमां द्रढ रहेजे. अज्ञानीओ निंदा करे तेथी कांई सुंदर मार्ग बगडी जतो
नथी.
तुं तारा स्वप्रयोजनने साधवामां उत्साहित तत्पर रहेजे; कोई निंदा करे ते
सांभळीने तारा स्वप्रयोजनमां ढीलो थईश मा. जगतथी निरपेक्षपणे तुं एकलो पण
अंदर आवा सुंदर वीतरागमार्गने साधजे, परम भक्तिथी साधजे. प्रतिकूळताना गंज
आवे तोपण चैतन्यस्वरूपने साधवाना तारा उल्लासभावने मोळो पडवा दईश नहीं.
तारा परम आनंदस्वरूप परमात्मतत्त्वना सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–आचरणमां तुं द्रढ रहेजे.
संसारमां तो प्रतिकूळता होय, तेथी कांई अंतरमां तारा स्वरूपने साधवामां ते नडती
नथी.
अरे, अनंत दुःखथी भरेला आ संसारमां जीवोने सुख माटे जिनमार्ग एक
ज शरण छे, एटले के आत्माना सम्यक्त्वादिरूप वीतरागभाव ज जीवने शांति
देनार छे. तुं तारा आत्मामांथी आवी शांति प्रगट करजे; जगतना अज्ञानीओ
कोलाहल करे तेथी तुं तारी शांतिमांथी डगीश मा. अहा, आवो सरस परमशांत
रत्नत्रय मार्ग, तेनी भावना करवा जेवी छे. रत्नत्रयमार्गमां तत्पर जीवने
जगतमां कांई दुःख छे ज नहीं. जगत सामे जोवानुं शुं काम छे? अंतरमां
निजात्मामां उपयोग जोडीने शुद्धरत्नत्रय–परिणतिरूपे परिणमवुं तेनुं नाम
निजभावना छे, आवी निजभावना परम आनंद