आ शास्त्र रचुं छुं; अने जिनेन्द्रभगवाननो उपदेश यथार्थपणे जाणीने
हुं आ शास्त्रमां मोक्षमार्गनुं अने तेना फळरूप मोक्षनुं कथन करीश.
एटले हे श्रोताओ! तमे पण तमारा परम तत्त्वमां अत्यंत अंतर्मुख
थईने, निजआत्मानी भावना करजो; परमतत्त्वनी भावना वडे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप आनंदमार्ग प्रगट थशे, अने तेना फळरूप
महाआनंदरूप निर्वाणनी प्राप्ति थशे.
ज्ञानमां आवी गयुं, तो हवे तारी मोजुदगीमां हुं बीजा मोहमुग्ध संसारीओने केम
नमुं? प्रभो! भवने जीतनारा तो एक तमे ज छो, ने अमे पण भवथी छूटवाना
मार्गने ज साधी रह्या छीए, तेथी आप ज अमारा वंद्य छो. प्रभो! भवनो अभाव
थाय एवो सुंदर मार्ग आपे ज बताव्यो छे. आपे स्वयं भवनो अभाव करीने,
भवना नाशनो उपाय उपदेश्यो छे, तेथी आपने नमस्कार करीने हुं आ नियमसार
द्वारा निजभावना करुं छुं.