Atmadharma magazine - Ank 339
(Year 29 - Vir Nirvana Samvat 2498, A.D. 1972)
(Devanagari transliteration).

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: ४८ : आत्मधर्म : पोष : २४९८
‘निजभावना–अर्थे रच्युं में नियमसार–सुशास्त्रने’
परमेश्वर भागवतशास्त्र
नियमसार
(वीर सं. २४९८ पोष सुद एकम)
[ नवमी वखतनां प्रवचनोनो प्रारंभ ]
आठमी वखत पूरुं थईने फरीने नवमी वखत आ
भावगतशास्त्र शरू थाय छे. आचार्यदेव कहे छे के हुं निजभावना अर्थे
आ शास्त्र रचुं छुं; अने जिनेन्द्रभगवाननो उपदेश यथार्थपणे जाणीने
हुं आ शास्त्रमां मोक्षमार्गनुं अने तेना फळरूप मोक्षनुं कथन करीश.
एटले हे श्रोताओ! तमे पण तमारा परम तत्त्वमां अत्यंत अंतर्मुख
थईने, निजआत्मानी भावना करजो; परमतत्त्वनी भावना वडे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप आनंदमार्ग प्रगट थशे, अने तेना फळरूप
महाआनंदरूप निर्वाणनी प्राप्ति थशे.
अनंत ज्ञान–दर्शन जेमने ऊघडी गया छे एवा सर्वज्ञ परमात्मा
वीरनाथ जिनने नमस्कार करीने आ नियमसार शरू थाय छे.
हे सर्वज्ञ जिन–परमात्मा! मारा ज्ञानमां तारुं अस्तित्व होतां हुं हवे बीजा
मोही जीवोने केम भजुं? तारुं परम वीतराग सर्वज्ञस्वरूप जेवुं छे तेवुं मारा
ज्ञानमां आवी गयुं, तो हवे तारी मोजुदगीमां हुं बीजा मोहमुग्ध संसारीओने केम
नमुं? प्रभो! भवने जीतनारा तो एक तमे ज छो, ने अमे पण भवथी छूटवाना
मार्गने ज साधी रह्या छीए, तेथी आप ज अमारा वंद्य छो. प्रभो! भवनो अभाव
थाय एवो सुंदर मार्ग आपे ज बताव्यो छे. आपे स्वयं भवनो अभाव करीने,
भवना नाशनो उपाय उपदेश्यो छे, तेथी आपने नमस्कार करीने हुं आ नियमसार
द्वारा निजभावना करुं छुं.
वीतरागता अने सर्वज्ञता वडे ज आत्मानी शोभा छे. समवसरणादि
संयोगवडे भगवान शोभे छे–एम न कह्युं पण राग–द्वेष–मोहरहित वीतरागता वडे